गुरुवार, 19 मार्च 2009


आठ बजने वाले हैं ?

विवेक वाजपेयी(मुसाफिर)टीवी पत्रकार

( कहानी की घटायें और पात्र काल्पनिक हैं इनका वास्तविकता से कोई लेना- देना नहीं है अगर किसी पात्र या घटना से मिलान होता है तो महज संयोग होगा इसके लिए लेखक जिम्मेदार नहीं होगा )

घड़ी की सूइयां तीन बजने का संकेत दे रही हैं। चैनल वन के आफिस में सुबह की शिफ्ट के लोग अपने-अपने घरों की ओर कूच करनें की जल्दी में दिख रहे हैं। शाम की शिफ्ट के लोग आते जा रहे हैं और अपना अपना काम संभालने में लगेहैं। तभी चैनल वन के न्यूजरूम में आउटपुट (खबरों का संपादकीय विभाग जो ये निर्णय लेता है कौन सी खबर प्रसारित होगी) के सीनियर प्रोड्यूसर राकेश जी प्रवेश करते हैं। राकेश जी थोड़ा शख्त मिजाज व्यक्ति हैं लेकिन अंदर से उतने ही नरम दिल इंसान भी यानि कि दगनें के दो चार घंटे बाद नारमल हो जाते हैं। राकेश जी एशोसिएट प्रोड्यूसर मिश्रा जी से कहते हैं कहो मिश्रा जी कैसे हो मिश्रा जी उत्तर देते हैं सब ठीक है सर। असल में मिश्रा जी बहुत सीधे-सादे इंसान हैं। अपनी सिधाई के चलते कभी-कभी बेचारे मात खा जाते हैं। बहुत बार न्यूजरूम के लोगों ने देखा है जब मिश्रा जी की गलती ना होने पर भी वो डांटे गए हैं। जब मामला कुछ गड़बड़ होता है तो राकेश जी बड़ी चतुराई से मिश्रा जी को आगे कर देते हैं।इतने में राकेश जी अपनी सीट पर बैठते हैं और रनडाउन पर क्लिक करते हैं(रनडाउनन्यूज बुलेटिन में खबरों के क्रम से बनता है) जो सुबह की शिफ्ट के लोग बनाकर गए हैं। रनडाउन देखते ही राकेश जी एकदम से आग बबूला हो जाते हैं और एकाएक फटपड़ते हैं राकेश जी – क्या यार चूतियापा है, इन सालों को इतना भी देखने की फुर्सत नहीं है कि कल की खबर बगैर अपडेट के पेले पड़े हैं। आखिर पूरा दिन ये लोग क्या उखाड़ते रहते हैं। इसके बाद कुछ पुरानी ख़बरों का फोल्डर देखने लगते हैं जो वहां से नदारत है। अब तो राकेश जी एकदम से तिलमिला उठते हैं और एक ही सांस में भाई लोगों के घर वालों तक की इज्जत अफजाई में कसीदे गढ़ने से नहीं चूकते हैं। यानि की गरियाने लगते हैं, और मिश्रा जी से कहते है यार ऐसे लोगों के साथ मैं कामनहीं कर सकता और बड़बड़ाते हुए न्यूजरूम से बाहर निकल जाते हैं। बाहर कोने में जाकर राकेश जी उगलियों में सिगरेट दबाए कस पर कस लगाए जाते हैं राकेश जी जब टेंशन में होते हैं तो उनके टेंशन रिलीज का सबसे उत्तम साधन सिगरेट ही होती है। वहीं चैनल वन में कुछ लोग एसे भी हैं जो हर बुलेटिन के बाद सिगरेट महरानी की सेवा लेना पसंद करते हैं और खुद को तरो-ताजा महसूस करते हैं। अब राकेश जी तनामुक्त होकर न्यूजरूम में आते हैं और सारे गिले-शिकवे भुलाकर काम में जुट जाते हैं। उधर जिसको जो ख़बर मिली है उसको वो जल्दी से तैयार करके रनडाउन में लगवाने की जल्दी में कम्प्यूटर की की-बोर्ड पर अपनी उंगलियां जोरजोर से पटक रहा है। तभी न्यूजरूम के दूसरी तरफ से आनंद जी स्टूडियो की तरफ से आते हैं। आनंद जी आनंदित कम और सख्त ज्यादा रहते हैं। आनंद जी एंकर और प्रड्यूसर हैं या यूं कहें कि चैनल के एक मजबूत स्तम्भ हैं और पुराने भी हैं। हलांकि उनकी उम्र ज्यादा नहीं हैं लेकिन ज्ञान के अथाह सागर कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी अब जाहिर है जो चैनल का स्तंभ होगा उसकी चैनल में चलती भी खूब होगी। चैनल में उनकी बात को कोई काटने वाला नहीं है, चैनल हेड तक उनकी बात मानते हैं यानि जो कह दिया उसमें कोई गुंजाइश का सवाल ही नहीं उठता और खबरों पर पकड़ तो गजब की है तभी तो स्टुडियो में बैठे-बैठे आउटपुट को बताते हैं कि फलां खबर सही करो। चैनल में आनंद जी का नाम लेते ही चैनल के अधिकतर लोग यही नसीहत देने लगते हैं कि भाई उनसे बच के रहना। क्योंकि काम के प्रति आनंद जी बहुत इमानदार हैं काम को लेकर तनिक भी हीला-हवाली उनको पसंद नहीं, उनके लिए आठ बजने का मतलब आठ होता है ना एक मिनट इधर ना उधर चैनल में किसी को नौकरी देने का तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन अगर उनकी नजरें तिरछी हो गईं तो बंदे की छुट्टी पक्की समझो फिर उसको काटने वाला कोई नहीं इसलिए चैनल में अधिकतर लोगों की उनसे फटती है। उनको देखते ही लोगों को सांप सूंघ जाता है। आनंद जी का एक खास प्रोग्राम चैनल पर रात आठ बजे हफ्ते में पाच दिन आता है जिसको लेकर लोगों में काफी बेचैनी रहती है। आनंद जी न्यूजरूम में बैठे नसीम से कहते हैं और नसीम क्या हो रहा है। नसीम – कुछ नहीं सर बताइए।आनंद जी –सुनों नसीम आज चांद पर चलना है । यानि कि आज आनंद जी का चांद पर प्रोग्राम होगा, समझे ना सब कुछ अरेंज कर लेना प्रोग्राम समय पर चाहिए इतना कह कर आनंद जी न्यूजरूम से बाहर निकल जाते है और एक कोने में दीवार से पैर टिकाकर सिगरेट के कस लेने लगते हैं (ये उनका पसंदीदाइस्टाइल है।) और उनके दिमाग में चांद से संबंधित एक से एक बेहतर सवाल कौंधने लगते हैं। जो एक एक कर प्रोग्राम के दौरान वैज्ञानिकों पर अर्जुन के तीरों की तरह बरसेंगे ।उधर नसीम जो असिस्टेंट प्रोड्यूसर हैं जांद की सैर करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। अभी घड़ी में 6 बज रहे हैं और दो घंटे बाद प्रोग्राम चलना है। नसीम जी भी अपने गुरू यानि आनंद जी के नख्से कदमों पर हैं ,भाषा से लेकर ,राजनीति तक में अच्छी पकड़ रखते हैं। वैसे नसीम जी को चैनल की चलती फिरती लाइबरेरी भी कह सकते हैं क्योकि अगर आपको कोई विजुअल नही मिल पा रहा है तो नसीम जी की सेवा ली जा सकती है और वो पलक झपकते ही बता देगें कि फलां टेप निकलवा लो।नसीम ने सारी स्क्रिपटिग कर ली है और एडिटरूम में बैठे स्टोरी एडिट करवाने में लगे हुए हैं।(एडिटरूम में वीडियो का संपादन किया जाता है।)जैसे-जैसे घड़ी की सूइयां आगे बढ़ रही हैं वैसे-वैसे नसीम के साथ वहां मौजूद एडीटरों की सांसे भी तेज होती जा रही हैं। तीन एडीटरों को नसीम जी अकेले ही संभाल रहे हैं। तीनो मशीन के समान हाथ चला रहे है , स्टोरी लगभग फाइनल ही होने वाली हैं। इसके साथ ही वह समय आने ही वाला है जब चारों ओर सन्नाटा छा जाता है यानि रात के आठ बजे। इस समय को लेकर चैनल के कुछ लोग सन्डे और सैटरडे को चुटकी लेते हुए कहते हैं भई आज तो आठ ही नहीं बजे। अब कार्यक्रम से संबन्धित सभी लोग पीसीआर प्रोडक्शन कंट्रोल रूम में पहुंच गये हैं।जहां से कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है। यहां कि हालत इस समय काफी पतली होती है।पीसीआर में मौजूद लोगों में से दो लोगों की परीक्षा की गड़ी है। उनको सबसे ज्यादा बेचैनी है। एक तो साउंड पर आये सुरेश को और दूसरे नये लड़के विनय को जो ट्रेनी है। और उसको चैनल में आये चार पांच दिन हुए हैं । उसे टी।पी। चलाने के लिए भेजा गया है। टी।पी। वो मशीन होती है जिसे चलाने से एंकर खबर पढ़ता है। वैसे आनंद जी जब स्टूडियो में होते हैं तो टी।पी।चलाना भी आसान नहीं होता है,क्योंकि आनंद जी कब कहां से टीपी पढ़ने लगे और कब अपने आप से धारा प्रवाह बोलने लगें कुछ कहना मुश्किल है। ऐसे में टीपी चलाने वाले का हड़बड़ा जाना स्वाभाविक है। ऊपर से उनकी दहशत जो पीसार में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। तभी एंकर यानि आनंद जी का बोलने का इसारा स्टूडियो से होता है जिसको देखते ही विनय तुरंत कहता है कि एंकर आडियो देना और आनंद जी की बुलंद आवाज टाक बैक से आती है, क्यो अमित क्या देर है चालू किया जाए । पैनल प्रोड्यूसर अमित मरियल सी आवाज में –सर अभी पहला पैकेज और स्टिग नहीं आया है । उधर आठ बजनें में करीब तीन मिनट बाकी हैं। आनंद जी कड़क आवाज में गरजते हैं तो नसीम को बुलाओ यहां क्या हम तमाशा करने के लिए बैठे हैं। तभी दौड़ते हुए नसीम जी पीसीआर में दाखिल होते हैं। और कहते हैं ॥बस सर पैकेज आने वाला है । आनंद जी॥ आने वाला क्या होता है, अभी तक आया क्यो नहीं ,मैं कुछ नहीं जानता दो मिनट में अगर पैकेज नहीं तो सभी लोग समझ लेना । और गेस्ट का क्या सीन है । नसीम ॥सर पहुचने वाले हैं। गेस्ट को बीच में बैठा लेंना चलो शुरू करो॥आनंद जी ने कहा। घड़ी की सूइयां आठ बचने का संकेत दे रही हैं और अभी तक पैकेज नहीं पहुचा है। पीसीआर में मौजूद सभी की सांसे अटकी हुई हैं। तभी टॉक बैक से आनंद जी की आवाज एक बार फिर गूजती है आया क्या । अमित ॥सर आईटी में कुछ गड़बड़ है। आनंद जी ॥मैं नहीं जानता अगर प्रोग्राम खराब हुआ तो तुम सब नपोगे।कार्यक्रम शुरू होता है औऱ आनंद जी स्क्रीन पर कार्यक्रम का आगाज करते हैं। तभी अचानक कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखकर चिल्लाता है पैकोज आ गया और तुरंत उसको चलाता है। तभी हाफते हुए नसीम जी दोबारा पीसीआर में घुसते हैं और कहते है अमित गेस्ट आ गया है सर को बता दो ॥अमित आनंद जी को गोस्ट के आने की सूचना देता है और आनंद जी पैकेज के बीच में गेस्ट को स्टूडियो में बैठाने का इसारा करते हैं। कार्यक्रम धीरे-धीरे अपने शबाब पर पहुचने ही वाला होता है कि विनय से टीपी अचानक आगे बढ़ जाती है जिसे देखकर पैनल प्रोड्यूसर अमित चिल्लाता है अरे यार टीपी कहां पहुंचा दी। क्या मेरी नौकरी खाएगा। इतने में टीपी चलाने वाले नये लड़के विनय से हड़ब़ड़ी में टीपी का नेक्स्ट बटन दब जाता है और टीपी कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ जाती है जिससे स्क्रीन पर समय से पहले ही ब्रेक लिखकर आ जाता है जिसे देखकर पीसीआर में मौजूद लोगों के मानों हांथ पैर फूल जाते हैं। हलांकि आनंद जी मझे हुए पुराने एंकर हैं इसलिए मामले की नजाकत को देखकर सब संभाल लेते हैं। लेकिन पीसीआर के लोग विनय को धौसने में लगे हैं। अमित ॥यार तू तो जाऐगा ही लेकिन कमसे कम दूसरों पर तो रहम करो । ब्रेक होने के बाद आनंद जी का स्वर टॉक बैक के जरिए पीसीआर कौंधता है। टीपी पर कौन है। अमित कहता है ॥सर विनय है आनंद जी इसे टीपी चलाने की तमीज नहीं है तो क्यो बैठा दिया। हमें चूतिया समझ रखा है जो तुम लोगों के एक्सप्रीमेंट के लिए आनएयर गला भाड़ रहे हैं। विनय तो मारे डर के कांप रहा है,उसे कुछ समझ नहीं आ रहा है सिवाय नौकरी जाने के। उसे तो बस यही लग रहा है कि एक तरफ कार्यक्रम खत्म होगा और दूसरी तरफ उसकी नौकरी उसको अब कोई बचाने वाला नहीं है। वह मन ही मन इस उधेड़बुन में है कि अपने जानने वालों और मित्रों को क्या बतायेगा कि नौकरी क्यों छोड़ दी है, या छूट गई ।फिर सोचता है कि अगर सही कारण बताऊंगा तो लोग क्या कहेंगे । कि तुझसे एक इतना छोटा सा काम नहीं हो सका तो तू क्या खाक चैनल में काम करेगा।विनय को अपने साथ अपने घर वालों के सपने टूटते साफ नज़र आ रहे थे कि पैनल प्रोड्यूसर की आवाज तीर की भांति उसके कानों में घुसती चली गई अरे टीपी क्यों नहीं चला रहा है क्या निमंत्रण देना पड़ेगा तब चलायेगा।कैसे कैसे लोग टीवी में काम करने आ जाते हैं, जैसे अमित चैनल में ही पैदा हुआ हो विनय मन में सोचता है। विनय टीपी चलाने लगता है औऱ मन ही मन सोचता है क्या इसी दिन के लिए उसने चैनल ज्वाइन किया था। उसका चार साल पेपर काम करने का अनुभव क्या इनके किसी काम का नहीं । क्या उसकी टीवी पत्रकार बनने की हसरत धरी की धरी रह जाऐगी टीवी में क्या टीपी चलाना ही असली पत्रकारिता होती है। विनय ये सब बाते सोच ही रहा था कि पैनल प्रोड्यूसर अमित की कार्यक्रम वाइंडअप करने की आवाज आती है। उधर विनय की परीक्षा का रिजल्ट आने ही वाला है जिसमें उसके फेल होने के पूरे आसार साफ नज़र आ रहे हैं। सभी को यही चिंता है कि कार्यक्रम खत्म होते ही विनय पर बिजली गिरनी तय है।कार्यक्रम खत्म करके आनंद जी न्यूजरूम में आते हैं। जहां एक कोने की सीट पर विनय उदास मन से दुबका हुआ बैठा है । आनंद जी राकेश जी से कहते हैं ॥यार राकेश जी क्यो आप क्यों प्रोग्राम की मा-बहन एक करवाना चाहते हो । राकेश जी मैं समझा नहीं,आनंद जी अरे यार आज टीपी पर किस चूतिए को भेजा था उसको जब टीपी चलाने की तमीज नहीं है तो क्यो भेज दिया । यार कैसे –कैसे लोगों को रख रखा है आपने। राकेश जी इसारे से विनय को बुलाते हैं विनय जी सर॥राकेश जी ॥क्या हो गया था। विनय धीरे से सर कुछ गड़बड़ी हो गई थी। आनंद जी कुछ नहीं बहुत गड़बड़ी थी विनय मिमियाते हुए सर अब कभी ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी । आनंद जी बड़ी गौर से उसके चेहरे को पढ़ते हैं और कुछ देर कुछ नहीं बोलते हैं न्यूजरूम में सभी के दिल की धड़कने तेज हैं कि देखो क्या हो। फिर थोड़ी देर बाद आनंद जी के होंठ हिलते है लोग सोच रहे हैकि आनंद जी क्याफरमान सुनाते हैं। कि आनंद जी की आवाज गूजती है अब कभी ऐसी गलती तो नहीं होगी,वरना अंजाम तुम खुद सोच लो । इतना कहकर आनंद जी न्यूजरूम से बाहर निकल जाते हैं, और विनय के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर जाती है। और सभी लोग गहरी सांस लेते हैं जैसे कोई जंग फतेह कर ली हो पीसीआर के लोग अगले बुलेटिन की तैयारी में जुट जाते हैं। लेखक – विवेक वाजपेयी(मुसाफिर)टी।वी पत्रकार

बुधवार, 18 मार्च 2009

-बस की बेबस बालायेंः-

बस की बेबस बालायेंः-
आजकल दिल्ली के किसी बस स्टाप पर खड़े होकर आप गौर से देखिए ,अधिकतर लड़कियां अपने-अपने मोबाइल पर व्यस्त दिखेंगी। एक भी फ्री नहीं दिखेगी। कोई हेडफोन को कान में लगाकर तो कोई फोन को कान पर चिपका कर वार्तालाप में मशगूल होगी। किससे बाते कर रही हैं समझ में नही आता क्योकि लड़के तो सारे फ्री खड़े होते हैं। कोई फोन पर चिपका नहीं दिखता।
ये आधुनिक बालायें घर से निकलते ही फोन पर व्यस्त हो जाती हैं उससे(ब्यायफेन्ड) बातें करने में,बस स्टाप पर खड़ी होकर बात करती हैं । बात करते हुए बस में चढ़ जाती हैं,फिर भी बातें नहीं रूकती हैं बस तो जरूर रूकती है पर बातें नहीं पता नहीं कौन सी विदेश नीति फोन पर सुलझा रही है ,कहना बेहद मुश्किल है। बस में चढ़ते ही ये फौरन नजर दौड़ाती हैं अगर कोई जेन्टस लेडीज सीट पर बैठा दिख गया तो उसकी शामत आई समझो तुरन्त फरमान जारी कर देती हैं प्लीज लेडीज सीट,बेचार जेन्टस अगर कहीं न सुन पाया तो ये आधुनिक बालायें उस पर तुरन्त हांथ डाल देती हैं और उसके कंधे को झकझोर कर चिल्ला पड़ती हैं लेडीज सीट । जेन्टस को सीट से हटाकर और सीट के तल पर अपना धरातल स्थापित करके ऐसा गर्व महसूस करती हैं जैसे लक्ष्माबाई ने लार्ड डलहौजी को परास्त कर दिया हो । लेकिन मजे की बात ये है कि फिर भी फोन नहीं रुकता है। ये क्या बातें कर रही हैं क्या मजाल कि आप जरा भी समझ पाएं आपके कानों के पर्दे कितने ही तेज क्यों ना हो । बस मुह बराबर चल रहा है । बस से ज्यादा मुह चलायमान है। पर उनकी बातें सुन पाना हिमालय को दिया दिखाना है। पास में खड़ा हर लड़का बातें सुनने को आतुर दिखाई देता है लेकिन असफलता ही हांथ लगती है।
वहीं बस में खड़े एक लड़के ने दूसरे से कहा यार ये कितना बैलेंस रखती हैं,या मोबाईल कंपनी ने यूं ही मोबाइल दे रखा है बतियाने के लिए । दूसरे लड़के ने कहा नहीं यार तुमको नहीं मालूम ये फोन नहीं करती हैं ये मिसकॉल करती हैं ,फोन तो उसने मिलाया है, इसने तो मिसकॉल की होगी। फोन तो उधर से गधेनाथ ने मिलाया होगा। जैसे ही सुबह घर से निकली आफिस के लिए बस तुरन्त गधेनाथ को एक मिसकॉल दाग दी और प्रेमातुर नाथ ने फोन मिला दिया । इस बीच अगर कहीं फोन इंगेज हुआ तो नाथ के दिल की धड़कने और तेज हो जाती हैं, कि आखिर दूसरा फोन कहां से आ गया ,किससे बातें करनी लगीं। लेकिन शायद नाथ को ये नहीं मालूम कि ये आधुनिक बालायें ,बालायें कम बलायें ज्यादा दिखती हैं। इनकी आदतें भैसों जैसी प्रतीत होती हैं ये जहां हरा-भरा चारा देखेंगी वहीं मुह मार लेंगी । इसको ये गलत भी नहीं मानती।
कुछ मनचलों के लिए ये आधुनिक बालायें साक्षात फैशन टीवी होती हैं। कुछ की नजरों में एम टीवी होती हैं,और कुछ के लिए ये ऐसी टीवी होती हैं, जिनको परिवार के साथ बैठकर नहीं देखा जा सकता है। कुछ को देखकर ऐसा लगता है मानो सीधे रैंम्प पर जा रही हैं कौन सा कपड़ा कब फिसल जाए कुछ पता नहीं। इन बलाओं के दर्शन अक्सर दिल्ली की बसों में होते रहते हैं। बसों में ये रंग बिरंगी तितलियां खूब दिखाई देती हैं। कोई परकटी होती है। कोई उड़नपरी होती है। कोई नकचढ़ी होती है, कोई चुक चुकी होती है, कोई उतार पर होती है, तो कोई चढ़ाव पर होती है। कोई किसी पर मर चुकी होती है ,तो कोई किसी पर मर रही होती है ,कोई चढ़ने वाली होती है तो कोई उतरने वाली होती है। इनमें से कुछ को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि कुछ के कमर के ऊपर के कपड़े ऊपर की ओर छोटे होते जाते हैं और नीचे के कपड़े नीचे की ओर बीच के कटि प्रदेश में स्वच्छ और समतल मैदान साफ देखा जा सकता है कुछ लोगों को यहीं पर सौन्दर्य बोध होता है। तबतक बस स्टाप पर रूक चुकी होती है मैडम जी बस से बाहर जा रही हैं लेकिन बातें अब भी जारी हैं........
लेखक – विवेक वाजपेयी(मुसाफिर)टीवी पत्रकार