रविवार, 17 अक्तूबर 2010

मैं भी रावण बनूंगा.

मैं भी रावण बनूंगा.

जहां अपने देश में बचपन से ही राम के आदर्शों के बारे में बच्चों को बताया पढ़ाया जाता हैं और उन पर चलने की नसीहत दी जाती है, वहां ऐसी बात सुन कर आप सभी को झटका लग रहा होगा कि ये क्या बात हुई। राम के आदर्शों की दुहाई देने वाले इस देश में रावण बनने की बात हो रही है। लेकिन ये बात काफी हद तक सत्य है। अभी हालही की बात है जब मेरे पास मेरे एक मित्र का सुबह ही फोन आया और उसने ऐसी ही मंशा जाहिर की सुनकर तो मुझे भी पहली बार मजाक लगा लेकिन उसकी आगे की बात सुनकर मैं भी सोंच में डूब गया कि अब ये दिन आ गये हैं पत्रकारों के कि उनको अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए रावण बनना पड़ेगा। हमारे मित्र पेशे से पत्रकार हैं भगवान ने हस्टपुस्ट शरीर और कद काठी उनको दी है। काफी समय से मीडिया में सक्रिय हैं। उन्होंने बहुत खोजी पत्रकारिता कर तमाम खुलासे किये हैं जिनके चलते उन्होंने खूब नौकरियां भी बदली कभी इस चैनल कभी उस चैनल लेकिन प्राइवेट नौकरी खासकर पत्रकारिता में कुछ नौकरी जाने की संभावना ज्यादा ही बनी रहती है। सो बीच-बीच में बेरोजगार भी हो जाते हैं। उनके पीछे उनका परिवार भी है जिसमें बीवी और दो छोटे बच्चे भी जो कभी कांवेन्ट स्कूल में पढ़ते थे आज घर पर ही देखे जाते हैं। कारण बीच में नौकरी छूट जाना। क्योंकि जिस चैनल में काम करते थे पहले तो जान-जोखिम में डलवाकर उसके स्टिंग करवाया फिर उस खुलासे को खोलने की हिम्मत चैनल की नहीं हुई इसकी वजह तो चैनल वाले ही जाने लेकिन भाई ने जब इस पर ऐतराज जाहिर किया तो उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। समझ में नहीं आता ये वही पत्रकार है जिसने ना जाने कितनों की मदद की है। और जिसके नाम से लोग खौफ खाते थे जो दूसरों की लड़ाई अपने कंधो पर ले आगे आ जाता था। वो इतना असहाय कैसे हो गया कि खुद अपनी लड़ाई भी नहीं लड़ सकता है। नौकरी गई तो देनदारियां भी बढ़ती गई और एक दिन ये स्थिति आ गई कि माकान मालिक ने भी उसको अल्टीमेटम दे दिया कि अब और गुजारा नहीं हो सकता। भई कोई क्यों दो चार महीने का पैसा उधार करने लगे जहां आजकल एडवांस का जमाना है। फिलहाल इनको एक चैनल में बड़ी मसक्कत के बाद नौकरी तो मिली लेकिन, वो भी ऐसी कि कहने को तो रोजगार हो गए लेकिन तीन- महीने गुजर गए लेकिन सैलरी का कोई नामोनिशान नहीं। अब तो इनकी हालात और पतली हो गई। क्योंकि घर से बाहर निकलने के लिए किराए के पैसे तो चाहिए ही। इसलिए चारों ओर से मुसीबतों से घिरा इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। इसलिए इन्होंने रावण बनने की ठान ली। इन्होंने सुन रखा था कि आजकल रामलीला में पात्रों की अच्छी डिमांड हैं और पैसे भी अच्छे और नगद मिल जाते हैं। इसलिए इन्होंने रावण बनने की ठान ली और मुझसे कहीं बात करने की मिन्नत करने लगे। थक हार कर मैंने एक रामलीला कमेटी के मुखिया का नंबर ढूंढ निकाला और इनको लेकर जा पहुंचा मुखिया ने देखते पूछां कभी कहीं नाटक वगैरह में काम किया है इन्होंने कहा नहीं लेकिन मैं रावण बन सकता हूं। मुखिया ने इनका कांफीडेंस देखकर तैयार हुआ और बात बन गई लेकिन मुखिया ने कहा रावण बनने के लिए तेज आवाज की जरूरत होने जरा लाउडली बोलने की आदत डालो इन्होंने कहा ठीक मैं बहुत तेज बोलूंगा। होते करते वो दिन भी आ गया जब रावण को स्टेज पर प्रकट होकर भगवान श्रीराम से युद्ध करना और उनको ललकारना था। भगवान राम के सामने आते ही महाशय अपने संवाद ही भूल गए मुह से आवाज बहुत धीमी-धीमी निकली पीछे से रामलीला का मुखिया चिल्लाया अरे क्या कर रहे हो यार तुम रावण हो मिमिया क्यों रहे हो जोर से दहाड़ों लेकिन ये महाशय दहाड़ नहीं सके बल्कि मिमियाते ही रहे। इतने में मुखिया ने माइक संभाला और पर्दे के पीछे से दहाड़ने लगा। और किसी तरह आज का कार्यक्रम संपन्न हुआ कल से नए रावण के नाम का फरमान मुखिया ने सुनाते हुए इनकी जमकर खबर ली। महाशय की गलती नहीं है कभी ये भी खूब दहाड़ते थे लेकिन जब से ये इस नये सीग्रेड चैनल में आएं हैं बेचारे की आवाज ही गुम हो गई हैं यहां तो इन्होंने सिर्फ मिमियाना सीखा है। इनको भली भांति याद है पांडेय जी का हाल जिन्होंने तीन महीने गुजर जाने पर जरा सी ऊंची आवाज में सैलरी मांग ली थी । एचआर और चैनल हेड ने तुरंत पांडेय जी की जमकर खबर ली थी और कहा था बहुत चर्बी चढ़ गई है काम धाम कुछ नहीं चैनल में नेतागीरी करते हैं लोगों को भड़काते हो। ऐसे लोगों की चैनल को जरूरत नहीं हैं कल से यहां आने की जरूरत नहीं। पांडेय जी ने लाख सफाई दी हो लेकिन चैनल हेड सिर्फ एक ही शब्द तोते की तरह रटते जा रहे थे नो आरग्यूमेंट एनफ एनफ...। इस खौफनाक घटना का असर मेरे मित्र पर कुछ ऐसा हुआ कि वो बस मिमियाते हैं ऐसे में भला वो रावण तो बन गया लेकिन रावण की दहाड़ कहां से लाए जो अब कहीं खो गई है। दूसरे की आवाज उठाने वाला पत्रकार अपनी ही आवाज ऊठाने के विवश क्यों हो गया है। क्या आज इसी पत्रकारिता की दरकार है।

लेखक- विवेक वाजपेयीमनोज टी.वी. पत्रकार हैं।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

बहुत याद आए प्रभाष जी...


बहुत याद आए प्रभाष जी...
(विवेक वाजपेयी)
किसी को कभी भी याद किया जा सकता है। लेकिन हम बात खास उस जगह की कर रहे हैं जहां पर प्रभाष जी को याद करने के लिए ही लोग एकत्रित हुए थे। स्थान था दिल्ली में बापू की समाधि राजघाट के ठीक सामने स्थित गांधी स्मृति के सत्याग्रह मंडप का। जहां पर प्रभाष परंपरा न्यास ने स्वर्गीय प्रभाष जी के जन्मदिन के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में लोगों का हुजूम उमड़ा हुआ था। जिसमें करीब हर वर्ग के लोग मौजूद थे। वयोवृद्ध गांधी वादी लोगों से लेकर आज की युवा पीढ़ी तक सभी। देश की मीडिया के जाने माने लोगों से लेकर पत्रकारिता में कदम रखने वाले युवा भी। इसके साथ ही प्रबुद्ध साहित्यकार और प्रसिद्ध आलोचक भी जिनमें अशोक वाजपेयी और नामवर सिंह को मैं भली-भांति जान सका । प्रभाष जी के पत्रकारिता को दिए गए योगदान की चर्चा लोगों ने अपने अपने ढंग से की। लोगों ने अपने-अपने संस्मरण भी सुनाए। बतातें हैं कि प्रभाष जी को तीन चीजे जिंदगी भर बहुत पसंद रहीं। वो थी लोगों से बतियाना, खाना खिलाना और शास्त्रीय संगीत सुनना। इस कार्यक्रम में प्रभाष जी की तीनों पसंदों का ख्याल रखा गया था। तभी तो पंडित कुमार गंधर्व के पुत्र मुकुल शिवपुत्र के गायन और मालवा की दाल बाटी की भी व्यवस्था की गई थी । और कार्यक्रम में गांधीवादी लोगों की मौजूदगी। कार्यक्रम में प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने प्रभाष का सही अर्थ समझाते हुए व्याख्या की। उन्होंने बताया कि प्रभाष का मतलब, शाब्दिक अर्थ डिस्क्लोज करना होता है, रिवील करना होता है। यही तो करते रहे प्रभाष जी जीवन भर, खुलासे करते रहे। उदघाटित करते रहे। नामवर की यह व्याख्या सबको भाई। लोक धुनों, लोक संगीत, लोक जीवन के प्रति प्रभाषजी के प्रेम को नामवर ने अच्छे तरीके से बताया-सुनाया। ये व्याख्यान मैं नहीं सुन सका क्योंकि मैं कार्यक्रम में थोड़ी देर से पहुंचा था लेकिन एक हमारे मित्र यशवंत भाई ने खाना खाते हुए ये ब्याख्या सुनाई सो मैंने लिख दी।
प्रभाष जी के जन्म दिवस के मौके पर उनकी तीन पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। जिसमें उनकी पुस्तक आगे अंधी गली है का लोकार्पण सांसद एवं पत्रकार एचके दुआ ने किया। 21 वी सदी पहला दशक और मसि कागद ने नए संस्करण का विमोचन योगाचार्य स्वमी विद्यानंद ने किया। इसके साथ ही न्यास के प्रबंध न्यासी रामबहादुर राय जी ने संस्था के उद्देश्यों को बताया। साथ ही उन्होंने बताया कि पैसे के बदले खबर पर जोशी की मुहिम का नतीजा रहा कि प्रेस काउंसिल की ओर से 72 पेज की रपट दी है जो देश भर की हालात उजागर करती है। लेकिन बड़े मीडिया घरानों के दबाव में दूसरी 12 सदस्ययी टीम बनी जिसने महज 12 पेज की रिपोर्ट तैयार की। कार्यक्रम के अंत में मुकुल शिवपुत्र का गायन हुआ जिसने लोगों को मंत्रमुग्ध किया और फिर नंबर आया प्रभाष जी की लोगों प्रेम-पूर्वक आवभगत करने का यानि भोजन कराना इन्ही खास गुणों के चलते लोग उनको इतना चाहते थे और आज भी चाहते हैं। उनका लगाव और अपनत्व ही तो था जो उनके विदेशी मित्र भी फाइव स्टार की ऐशो आराम छोड़कर उनके पास थोड़ी सी ही जगह से अर्जेस्ट करके रहने आ जाया करते थे। हैं तो बात खाने की हो रही थी कार्यक्रम स्थल के दांयी तरफ लजीज खाने की व्यवस्था थी। जहां पर लोग तरह-तरह के व्यंजन का स्वाद ले रहे थे। लेकिन लोगों को फुस्फुसाते हुए मैंने सुना कि कुल्फी खाई की नहीं अरे भाई कुल्फी तो बड़ी मस्त है। जरुर खाना। कुल्फी के स्टाल पर कुछ अधिक ही भीड़ लगी थी। खाना खाकर जैसे ही प्लेट रखी हमारे न्यूज हेड को शायद कुल्फी वाली बात किसी से पता चल गई थी सो उन्होंने कहा विवेक सुना है कुल्फी बहुत बढ़िया है। मैने कहा ठीक है आप रुकिये मैं लाता हूं। और लाइन में लग गया लाइन में लगे लगे मारे गर्मी के हालात खराब हो रहे थे लेकिन कुल्फी ले जाना जरुरी था इसलिए लाइन गर्मी की परवाह किए बिना लगा रहा और करीब 30 मिनट बाद एक कुल्फी मेरे हांथ आ गई। वो कुल्फी सर के हवाले कर मैं दोबारा मुस्तैद हुआ और पहले की अपेक्षा जल्दी सफलता हांथ लग गई। जब कुल्फी को मुह से लगाया तो अहसास हुआ कि आखिर क्यों इतनी तगड़ी लाइन थी। वाह गजब का स्वाद था उस कुल्फी मीं लग रहा था शायद उस कुल्फी में प्रभाष जी की मिठास घुल गई थी। हलांकि शायद प्रभाष जी की मिठास सभी को मीठी ना लगती हो खासकर उन्हें जिनके खिलाफ वो आवाज बुलंद करने से कभी नहीं डरे हमेशा सच के साथ डटे रहे। अब कार्यक्रम लगभग पूरा हो चुका था लोग अपने-अपने घरों की ओर प्रस्थान करने लगे थे। रात का करीब ग्यारह बज रहा था। इसलिए मैंने भी राय साहब से अभिवादन कर घर लौटने के लिए तैयार हो गया। तभी राय साहब ने अपनत्वपूर्वक पूंछा वाजपेयी घर कैसे जाओगे मैंने कहा सर मैं अपने न्यूज हेड के साथ आया हूं उन्हीं के साथ चला जाउंगा। उन्होंने कहा तो ठीक है। लेकिन राय साहब के वो शब्द दिल को छू गए जहां आज की मतलबी दुनियां में किसी को किसी की कोई मतलब नहीं होता हैं वहां आज भी ऐसे लोग हैं जो दूसरों के लिए इतना सोचते हैं। जबकि मेरी राय साहब से मुलाकात हुए करीब छह ही महीने हुए हैं। फिर भी उनको मेरे घर पहुंचने की चिंता थी जबकी आदमी एक छोटे से कार्यक्रम बहुत व्यस्त हो जाता है और उन्होंने तो इतना बढ़ा आयोजन किया। सारे रास्ते मैं यही सोचता रहा कि राय साहब में कितना अपनत्व है।

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

प्यासा है पुष्कर...




(पुष्कर से लौटकर विवेक वाजपेयी की रिपोर्ट )

पुष्कर जिसका नाम बचपन से सुनते और किताबों में पढ़ते आया हूं। जिसे अभी तक सिर्फ महसूस किया था, जिसे सिर्फ कल्पना में ही देखा था जिसे देखने की के लिए अक्सर मन व्याकुल हुआ करता था, जिसका स्मरण करने पर मन मस्तिष्क में ब्रह्मा जी और पवित्र सरोवर की परिकल्पना साकार होती थी उस महान तीर्थ और सरोवर को नजदीक से देखने और महसूस करने का मौका मिला,उस महान तीर्थ और सरोवर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए खबर बनानी थी। दिल्ली से जयपुर और अजमेर से महज बाइस किलोमीटर की दूरी पर अरावली पर्तव की चोटियों से घिरा है पुष्कर तीर्थ।

रास्ते में चारों ओर ऊंचे नीचे रास्तों से होते हुए बहुत रोचक अनुभव हो रहा था मैं अपनी गाड़ी का सीसा उतार कर प्रकृति के मनोहारी द्रश्यों को जीभर कर देख रहा था और पुष्कर पहुंचने की व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी कि एक सज्जन से पूंछने पर पता चला कि अब हम पुष्कर के बहुत करीब पहुंच चुके हैं। हलांकि वो सज्जन बस पुष्कर के बारे में यही बता पाये वहां पर ब्रह्मा जी का मंदिर है और मेला लगता है। पुष्कर पहुंचकर ब्रह्म सरोवर देखने और कवर करने से ही शुरुआत की । हलांकि जिस सरोवर के बारे में बुहत कुछ पढ़ और सुन चुका था उसे पहली नजर देखने में बड़ी निराशा हुई ,वो पवित्र सरोवर जो लाखों लोगों की प्यास बुझाता था वो अब अपनी ही प्यास बुझाने के लायक नहीं बचा है। सरोवर में दूर-दूर तक पानी का नामोंनिशान नहीं है। सरोवर सूख चुका है। सरोवर के अंदर जाकर देखने पर पता चला कि सरोवर में सिर्फ गंदगी शेष बची है। पूरा सरोवर चारों ओर से विभिन्न घाटों से घिरा हुआ है सरोवर के चारों ओर 52 घाट बने हुए हैं जिनकी सीढ़िया सरोवर के अंदर आती हैं। लेकिन आखिरी सीढ़ी तक कहीं भी पानी नहीं है। ये नजारा देखकर मन विचलित हो जाता है। आखिर विश्व प्रसिध्द पुष्कर तीर्थ की ये दुरदशा क्यों है। और इसका जिम्मेदार कौन है। पूरे सरोवर की एक तरफ सरकार ने तीन कुंड बनवाए हैं जिनमें ट्यूबवेल के जरिए पानी भरा गया है। जिसमें श्रध्दालु स्नान करके पूजा पाठ करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि जो मनुष्य पवित्र सरोवर में स्नान करके ब्रह्मा जी के दर्शन करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य को पुण्य लाभ मिलता है। 52 कुंडो में नागा कुण्ड के पानी से निःस्संतान दम्पतियों को आशा बँधती है,यानि कि उनकी सूनी गोद हरी हो जाती है। वो भी अब पूरी तरह सूख चुका है। यही हाल रूप कुण्ड का भी है, जो रूप कुण्ड सुन्दरता और शक्ति प्रदान करने की ताकत रखता था, आज अपनी चमक खो चुका है। चारों ओर नज़र दौड़ाईये, चाहे वह कपिल व्यापी हो अथवा अन्य 49 घाटों के किनारे, सब ओर दूर एक ही नज़ारा है, सूखा हुआ सरोवर।

जब से सर्वशक्तिमान ब्रह्मा जी ने इस पवित्र सरोवर का निर्माण किया है, तब से लेकर आज तक यह सिर्फ़ एक बार ही सूखा है, वह भी 1970 के भीषण सूखे के दौरान। तो फ़िर अब क्या हुआ? बहरहाल, इस सरोवर के कायाकल्प की सरकारी योजना बुरी तरह भटककर फ्लाफ साबित हो गई, प्रतीत होती है। सरकार ने सरोवर को साफ करवाकर उसमें फिर से पानी भरवाने की योजना बनाई थी । जो मिट्टी में मिली हुई नजर आ रही है। सरोवर की पानी निकाल कर उसे तो सुखा दिया गया उसके बाद उसे भरने की सुध शायद सरकार या ठेकेदार को नहीं रही होगी तभी तो सरोवर पूरी तरह से सूख चुका है। और अभी सफाई भी पूरी नहीं हुई है वहां के लोगों को पता नहीं कि सफाई अब और होगी भी कि नहीं हां ये जरुर जानते हैं कि सरकार ने कितने पैसे इस काम के लिए आवंटित किए थे। घाट पर पूजा कराने वाले अमृत पाराशर का कहना है कि सरोवर के सूखने से अबकी बार काफी कम लोग पुष्कर आये जिसका प्रभाव सभी पर पड़ा है। शाल ओर कंबल की दुकान लगाने वाले पाठक जी का कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब पुष्कर में आने वाले श्रध्दालुओं की संख्या कम हुई है। उन्होंने बताया कि पुष्कर में हर साल करीब पांच लाख के करीब लोग आते थे लेकिन अबकी बार मुश्किल से डेढ़ से दो लाख लोग आये होंगे जिससे सेल भी प्रभावित हुई है। इसके साथ ही उनका गुस्सा प्रशासन पर भी है और उनका कहना है कि अब पुष्कर में भी चोरी और पाकेट मारी की वारदाते बढ़ गई हैं जो पहले नहीं होती थी जिसके लिए वो प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका आरोप है कि प्रशासन विश्व प्रसिध्द पुष्कर तीर्थ की ओर ध्यान नहीं दे रहा है जिसके चलते पुष्कर की ये दुर्दशा हो गई है। लेकिन क्या करें, हलांकि उन्होंने बताया कि केंन्द्र सरकार ने सरोवर की खुदाई और सफाई के लिए करीब छह करोड़ रूपये दिये हैं लेकिन काम छह लाख का भी नहीं हुआ है। सरोवर को देखने से साफ जाहिर होता है कि उनकी बात में काफी सच्चाई है। सरोवर के अंदर जो पहाड़ों से आकर मिट्टी जमा हो गई थी उसी की सफाई होनी थी लेकिन कुछ भाग के अलावा अभी काफी काम बकाया है। किसी को कुछ पता नहीं कि आगे सफाई का काम होगा कि नहीं। और रही-सही कसर इन्द्र देवता ने वर्षा नहीं करके पूरी कर दी। पुष्कर का विशाल सरोवर शुद्ध जल से भरा हुआ होता है, यह पानी अमूमन आसपास की पहाड़ियों से एकत्रित होने वाला वर्षाजल ही है। हिन्दू धर्मालु इसे "तीर्थराज" कहते हैं, अर्थात सभी तीर्थों में सबसे पवित्र, इस सम्बन्ध में कई लेख और पुस्तकें भी यहाँ मिलती हैं। कहा जाता है कि अप्सरा मेनका ने इस पवित्र सरोवर में डुबकी लगाई थी और ॠषि विश्वामित्र ने भी यहाँ तपस्या की थी, लेकिन सबसे बड़ी मान्यता यह है कि भगवान ब्रह्मा ने खुद पुष्कर का निर्माण किया है।

पौराणिक मान्यता के मुताबिक पुष्कर को पृथ्वी की तीसरी आंख और तीर्थोका सम्राट माना गया है। पुष्कर राज का वेद, पुराण, वाल्मीकि रामायण और महाभारत में भी उल्लेख किया गया है। एक समय था जब पुष्कर मेले में राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों के लाखो श्रद्धालु पवित्र पुष्कर सरोवर में डुबकी लगाने आते थे लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुके पुष्कर मेले में हजारों की तादाद में विदेशी पर्यटक, ग्रामीण परिवेश का नजारा देखने के लिए हर साल आते हैं। पुष्कर मेले के दौरान विभिन्न वर्ग संप्रदाय, जाति, मत और धर्मो के अनुयायी एक साथ तीर्थराज को अपनी भावांजलिअर्पित कर अपने को कृतार्थ समझते हैं। पुष्कर सरोवर के चारों ओर बने बावन घाटों पर अनेकता एकता में बदल जाती है पद्म पुराण में भी ऐसा उल्लेख मिलता है कि संसार के रचयिता ब्रह्माजीने नीचे की तरफ एक पुष्प गिराया था। यह पुष्प जिन स्थानों पर गिरा वे ब्रह्मा पुष्कर, विष्णु पुष्कर तथा शिव पुष्कर के नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्रह्माजीने पुष्कर में यज्ञ किया। ब्रह्माजीको ही मुख्य आहुति देनी थी। ब्रह्माजीआहुति देने बैठे तो उनकी पत्नी सावित्री के नहीं होने पर उनकी तलाश के बावजूद पता नहीं लगा। आहुति का समय गुजरा जा रहा था इसे देख ब्रह्माजीने गायत्री राम की गुर्जर युवती को साथ बिठाकर यज्ञ में आहुति देना शुरू कर दिया। जिससे देवी सावित्री नाराज हो गई और ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि अब तुम्हारी पूजा धरती पर और कहीं नहीं होगी इसी लिए सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी का मंदिर है। करीब चार किलोमीटर के दायरे में फैले पुष्कर सरोवर के चारों तरफ बावन घाट बने हुए है। श्रद्धालु घाटों पर पवित्र डुबकी लगाकर दान-पुण्य, पूजा-अर्चना कर अपने आप को धन्य मानते है। पुष्कर नगरी को मंदिरों की नगरी भी कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। पुष्कर नगरी में विश्व का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर है । इसके साथ ही करीब 500 मंदिर पुष्कर में बने हुए हैं। सुहृदय नाग पर्वतमाला जो अपने आंचल में पुष्कर को समेटे है कभी अगस्त्य, भतर्हरि,विश्वामित्र कपिल तथा कण्व ऋषि-मनीषियों की तपस्या एवं हवन स्थली रही है। धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि पुष्कर सरोवर के किनारे कभी कण्व मुनि का आश्रम भी था। पुष्कर में हर साल पशुओं का सबसे बड़ा मेला लगता है जिसे देखने के लिए विदेशों से लोग आते हैं। इस साल भी 26 अक्‍टूबर से 2 नवम्‍बर तक अन्‍तर्राष्‍ट्रीय पुष्‍कर मेले का आयोजन हुआ लेकिन सूखे पड़े पुष्‍कर सरोवर के कारण विदेशी सैलानियों और भारतीय लोगों की तादाद बहुत कम ही रही। स्वीटर्जरलैंड की रहने वाली स्टैफनी ने बताया कि वो 32 सालों से निरंतर पुष्कर आती हैं और यहां पर रूक कर मेले और मंदिरों में दर्शन कर अपने को आनंदित महसूस करती हैं लेकिन उनका कहना है कि पवित्र सरोवर के सूखने का उनको बहुत दुख है। विश्व प्रसिध्द पुष्कर तीर्थ की दुर्दशा का एहसास शायद सरकार को भी हो सके और वो इस ओर ध्यान दे तो शायद अगले साल पुष्कर मेले तक फिर से पुष्कर सरोवर अपने पुराने स्वरुप में आ सके और लोगों की प्यास बुझा सके ।