मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

प्यासा है पुष्कर...




(पुष्कर से लौटकर विवेक वाजपेयी की रिपोर्ट )

पुष्कर जिसका नाम बचपन से सुनते और किताबों में पढ़ते आया हूं। जिसे अभी तक सिर्फ महसूस किया था, जिसे सिर्फ कल्पना में ही देखा था जिसे देखने की के लिए अक्सर मन व्याकुल हुआ करता था, जिसका स्मरण करने पर मन मस्तिष्क में ब्रह्मा जी और पवित्र सरोवर की परिकल्पना साकार होती थी उस महान तीर्थ और सरोवर को नजदीक से देखने और महसूस करने का मौका मिला,उस महान तीर्थ और सरोवर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए खबर बनानी थी। दिल्ली से जयपुर और अजमेर से महज बाइस किलोमीटर की दूरी पर अरावली पर्तव की चोटियों से घिरा है पुष्कर तीर्थ।

रास्ते में चारों ओर ऊंचे नीचे रास्तों से होते हुए बहुत रोचक अनुभव हो रहा था मैं अपनी गाड़ी का सीसा उतार कर प्रकृति के मनोहारी द्रश्यों को जीभर कर देख रहा था और पुष्कर पहुंचने की व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी कि एक सज्जन से पूंछने पर पता चला कि अब हम पुष्कर के बहुत करीब पहुंच चुके हैं। हलांकि वो सज्जन बस पुष्कर के बारे में यही बता पाये वहां पर ब्रह्मा जी का मंदिर है और मेला लगता है। पुष्कर पहुंचकर ब्रह्म सरोवर देखने और कवर करने से ही शुरुआत की । हलांकि जिस सरोवर के बारे में बुहत कुछ पढ़ और सुन चुका था उसे पहली नजर देखने में बड़ी निराशा हुई ,वो पवित्र सरोवर जो लाखों लोगों की प्यास बुझाता था वो अब अपनी ही प्यास बुझाने के लायक नहीं बचा है। सरोवर में दूर-दूर तक पानी का नामोंनिशान नहीं है। सरोवर सूख चुका है। सरोवर के अंदर जाकर देखने पर पता चला कि सरोवर में सिर्फ गंदगी शेष बची है। पूरा सरोवर चारों ओर से विभिन्न घाटों से घिरा हुआ है सरोवर के चारों ओर 52 घाट बने हुए हैं जिनकी सीढ़िया सरोवर के अंदर आती हैं। लेकिन आखिरी सीढ़ी तक कहीं भी पानी नहीं है। ये नजारा देखकर मन विचलित हो जाता है। आखिर विश्व प्रसिध्द पुष्कर तीर्थ की ये दुरदशा क्यों है। और इसका जिम्मेदार कौन है। पूरे सरोवर की एक तरफ सरकार ने तीन कुंड बनवाए हैं जिनमें ट्यूबवेल के जरिए पानी भरा गया है। जिसमें श्रध्दालु स्नान करके पूजा पाठ करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि जो मनुष्य पवित्र सरोवर में स्नान करके ब्रह्मा जी के दर्शन करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य को पुण्य लाभ मिलता है। 52 कुंडो में नागा कुण्ड के पानी से निःस्संतान दम्पतियों को आशा बँधती है,यानि कि उनकी सूनी गोद हरी हो जाती है। वो भी अब पूरी तरह सूख चुका है। यही हाल रूप कुण्ड का भी है, जो रूप कुण्ड सुन्दरता और शक्ति प्रदान करने की ताकत रखता था, आज अपनी चमक खो चुका है। चारों ओर नज़र दौड़ाईये, चाहे वह कपिल व्यापी हो अथवा अन्य 49 घाटों के किनारे, सब ओर दूर एक ही नज़ारा है, सूखा हुआ सरोवर।

जब से सर्वशक्तिमान ब्रह्मा जी ने इस पवित्र सरोवर का निर्माण किया है, तब से लेकर आज तक यह सिर्फ़ एक बार ही सूखा है, वह भी 1970 के भीषण सूखे के दौरान। तो फ़िर अब क्या हुआ? बहरहाल, इस सरोवर के कायाकल्प की सरकारी योजना बुरी तरह भटककर फ्लाफ साबित हो गई, प्रतीत होती है। सरकार ने सरोवर को साफ करवाकर उसमें फिर से पानी भरवाने की योजना बनाई थी । जो मिट्टी में मिली हुई नजर आ रही है। सरोवर की पानी निकाल कर उसे तो सुखा दिया गया उसके बाद उसे भरने की सुध शायद सरकार या ठेकेदार को नहीं रही होगी तभी तो सरोवर पूरी तरह से सूख चुका है। और अभी सफाई भी पूरी नहीं हुई है वहां के लोगों को पता नहीं कि सफाई अब और होगी भी कि नहीं हां ये जरुर जानते हैं कि सरकार ने कितने पैसे इस काम के लिए आवंटित किए थे। घाट पर पूजा कराने वाले अमृत पाराशर का कहना है कि सरोवर के सूखने से अबकी बार काफी कम लोग पुष्कर आये जिसका प्रभाव सभी पर पड़ा है। शाल ओर कंबल की दुकान लगाने वाले पाठक जी का कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब पुष्कर में आने वाले श्रध्दालुओं की संख्या कम हुई है। उन्होंने बताया कि पुष्कर में हर साल करीब पांच लाख के करीब लोग आते थे लेकिन अबकी बार मुश्किल से डेढ़ से दो लाख लोग आये होंगे जिससे सेल भी प्रभावित हुई है। इसके साथ ही उनका गुस्सा प्रशासन पर भी है और उनका कहना है कि अब पुष्कर में भी चोरी और पाकेट मारी की वारदाते बढ़ गई हैं जो पहले नहीं होती थी जिसके लिए वो प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका आरोप है कि प्रशासन विश्व प्रसिध्द पुष्कर तीर्थ की ओर ध्यान नहीं दे रहा है जिसके चलते पुष्कर की ये दुर्दशा हो गई है। लेकिन क्या करें, हलांकि उन्होंने बताया कि केंन्द्र सरकार ने सरोवर की खुदाई और सफाई के लिए करीब छह करोड़ रूपये दिये हैं लेकिन काम छह लाख का भी नहीं हुआ है। सरोवर को देखने से साफ जाहिर होता है कि उनकी बात में काफी सच्चाई है। सरोवर के अंदर जो पहाड़ों से आकर मिट्टी जमा हो गई थी उसी की सफाई होनी थी लेकिन कुछ भाग के अलावा अभी काफी काम बकाया है। किसी को कुछ पता नहीं कि आगे सफाई का काम होगा कि नहीं। और रही-सही कसर इन्द्र देवता ने वर्षा नहीं करके पूरी कर दी। पुष्कर का विशाल सरोवर शुद्ध जल से भरा हुआ होता है, यह पानी अमूमन आसपास की पहाड़ियों से एकत्रित होने वाला वर्षाजल ही है। हिन्दू धर्मालु इसे "तीर्थराज" कहते हैं, अर्थात सभी तीर्थों में सबसे पवित्र, इस सम्बन्ध में कई लेख और पुस्तकें भी यहाँ मिलती हैं। कहा जाता है कि अप्सरा मेनका ने इस पवित्र सरोवर में डुबकी लगाई थी और ॠषि विश्वामित्र ने भी यहाँ तपस्या की थी, लेकिन सबसे बड़ी मान्यता यह है कि भगवान ब्रह्मा ने खुद पुष्कर का निर्माण किया है।

पौराणिक मान्यता के मुताबिक पुष्कर को पृथ्वी की तीसरी आंख और तीर्थोका सम्राट माना गया है। पुष्कर राज का वेद, पुराण, वाल्मीकि रामायण और महाभारत में भी उल्लेख किया गया है। एक समय था जब पुष्कर मेले में राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों के लाखो श्रद्धालु पवित्र पुष्कर सरोवर में डुबकी लगाने आते थे लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुके पुष्कर मेले में हजारों की तादाद में विदेशी पर्यटक, ग्रामीण परिवेश का नजारा देखने के लिए हर साल आते हैं। पुष्कर मेले के दौरान विभिन्न वर्ग संप्रदाय, जाति, मत और धर्मो के अनुयायी एक साथ तीर्थराज को अपनी भावांजलिअर्पित कर अपने को कृतार्थ समझते हैं। पुष्कर सरोवर के चारों ओर बने बावन घाटों पर अनेकता एकता में बदल जाती है पद्म पुराण में भी ऐसा उल्लेख मिलता है कि संसार के रचयिता ब्रह्माजीने नीचे की तरफ एक पुष्प गिराया था। यह पुष्प जिन स्थानों पर गिरा वे ब्रह्मा पुष्कर, विष्णु पुष्कर तथा शिव पुष्कर के नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्रह्माजीने पुष्कर में यज्ञ किया। ब्रह्माजीको ही मुख्य आहुति देनी थी। ब्रह्माजीआहुति देने बैठे तो उनकी पत्नी सावित्री के नहीं होने पर उनकी तलाश के बावजूद पता नहीं लगा। आहुति का समय गुजरा जा रहा था इसे देख ब्रह्माजीने गायत्री राम की गुर्जर युवती को साथ बिठाकर यज्ञ में आहुति देना शुरू कर दिया। जिससे देवी सावित्री नाराज हो गई और ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि अब तुम्हारी पूजा धरती पर और कहीं नहीं होगी इसी लिए सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी का मंदिर है। करीब चार किलोमीटर के दायरे में फैले पुष्कर सरोवर के चारों तरफ बावन घाट बने हुए है। श्रद्धालु घाटों पर पवित्र डुबकी लगाकर दान-पुण्य, पूजा-अर्चना कर अपने आप को धन्य मानते है। पुष्कर नगरी को मंदिरों की नगरी भी कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। पुष्कर नगरी में विश्व का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर है । इसके साथ ही करीब 500 मंदिर पुष्कर में बने हुए हैं। सुहृदय नाग पर्वतमाला जो अपने आंचल में पुष्कर को समेटे है कभी अगस्त्य, भतर्हरि,विश्वामित्र कपिल तथा कण्व ऋषि-मनीषियों की तपस्या एवं हवन स्थली रही है। धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि पुष्कर सरोवर के किनारे कभी कण्व मुनि का आश्रम भी था। पुष्कर में हर साल पशुओं का सबसे बड़ा मेला लगता है जिसे देखने के लिए विदेशों से लोग आते हैं। इस साल भी 26 अक्‍टूबर से 2 नवम्‍बर तक अन्‍तर्राष्‍ट्रीय पुष्‍कर मेले का आयोजन हुआ लेकिन सूखे पड़े पुष्‍कर सरोवर के कारण विदेशी सैलानियों और भारतीय लोगों की तादाद बहुत कम ही रही। स्वीटर्जरलैंड की रहने वाली स्टैफनी ने बताया कि वो 32 सालों से निरंतर पुष्कर आती हैं और यहां पर रूक कर मेले और मंदिरों में दर्शन कर अपने को आनंदित महसूस करती हैं लेकिन उनका कहना है कि पवित्र सरोवर के सूखने का उनको बहुत दुख है। विश्व प्रसिध्द पुष्कर तीर्थ की दुर्दशा का एहसास शायद सरकार को भी हो सके और वो इस ओर ध्यान दे तो शायद अगले साल पुष्कर मेले तक फिर से पुष्कर सरोवर अपने पुराने स्वरुप में आ सके और लोगों की प्यास बुझा सके ।