बुधवार, 7 दिसंबर 2011

एक शाम गंदी पिक्चर के नाम......

एक शाम गंदी पिक्चर के नाम......

वक्त शाम के साढ़े छह बजे...स्थान...वीथ्रीएस फन सिनेमा लक्ष्मीनगर...ये वही सिनेमा हाल है जहां पर मैने सन दो हजार छह में सितंबर महीने में दिल्ली में पहली फिल्म देखी थी...आज यानि बुधवार को करीब 10 दिन बाद मुझे साप्ताहिक अवकाश नसीब हुआ था। घर पर मन नहीं लग रहा था और सच पूछिये तो काम की मारा-मारी में काफी समय से फिल्म भी नहीं देख पाया था इसलिए सोचा कि क्यों न आज फिल्म देखी जाए। वैसे फिल्म जैसी चीज अकेले देखने में मुझे मज़ा नहीं आता और गर्लफ्रेंड जैसी चीज से मैं दूर ही हूं या यूं कहें कि अपने पास है नहीं। चूंकि आज फिल्म का भूत हमारे सिर पर सवार ही था इसलिए सोचा इसे ऊतार कर ही मानूंगा। फिर क्या था एक मित्र को फोन घुमाया जो फिल्म लाइन से ही हैं और 2004 से अगर फिल्म की भाषा में कहें तो मरा ही रहे हैं। हां पिछले तीन चार महीने से साहब को काम मिला है। एक बहुचर्चित सीरियल असिस्ट कर रहे हैं। वो मित्र भी दिल्ली में ही थे इसलिए कंपनी के लिए उन्हें ही बुला लिया और दोनों लोग जा धमके पिक्चर हाल के दरवाजे पर एक सुंदर कन्या ने दक्षिणा ग्रहण कर कागज की पर्ची यानि टिकट थमा दिया। इनदिनों दर्री पिक्चर की तारीफ भी काफी लोगों के मुह से सुन रखी थी इसलिए सोचा देख ही डालू कि आखिर ये गंदी पिक्चर कौन सी बला है। पिक्चर की बोल्डनेस और संवादों की तारीख काफी सुन चुका था। देखो भाई मैं कोई फिल्म क्रिटिक तो हूं नहीं जो लब्बोलुआज के साथ लिखूं मैं ठहरा आम इंसान जिसने जैसा देखा वैसा ही कुछ लिखने का प्रयास कर बैठा। आप लोग दिल थाम के बैठे यथा नाम तथा गुणे यानि कि जैसा नाम वैसा गुण फिल्म की सुरूआत ही यानि दूसर तीसरा सीन एक सेक्स सीन से होती है जहां पर एक आदमी औरत के साथ सेक्स कर रहा है और विद्या बालन यानि सिल्क जोर-जोर से उस सेक्स सीन की आवाजें निकाल रही हैं ये सुनकर उस औरत को बुरा लगता है जो सेक्स क्रीड़ा में लग्न थी और वो काम को छोड़कर विद्या बालन को गाली बकने लगती है और सीन खत्म हो जाता है। हमारे काफी मित्रों का कहना है कि इस सीन को क्यों डाला गया उनके समझ में बिल्कुल नहीं है जहां तक मुझे समझ आया उसके मुताबिक उस सीन से विद्या बालन की बोल्डनेस यानि फिल्म की भाषा मतलब दर्दी पिक्चर की भाषा में कहा जाए तो उनके हरामीपन को दर्शाता है। पूरी फिल्म सिल्क, सूर्यकांत, रमाकांत और इब्राहीम के इर्द-गिर्द घूमती है जिसका केंद्र बिन्दु सिल्क यानि विद्या बालन हैं। डायरेक्टर ने बॉलीवुड की सच्चाई को पर्दे पर उकेरने की कोशिश बड़ी साफगोई से की है। फिल्मों में सेक्स के पक्ष को उजागर किया है। फिल्म में एक डायरेक्टर इब्राहीम है जो सेक्स से बहुत चिढ़ता है और वो ऐसी फिल्म बनाना चाहता है जिसमें सेक्स का तड़का बिल्कुल ना हो। विद्या बालन का सेक्सी सांग वो पहली बार फिल्म से हटवा देता है। और फिल्म धड़ाम हो जाती है। जब प्रड्यूसर को पता चलता है तो वो उस सीन को दोबारा फिल्म में डलवाता है और लोगों को वो सेक्सी सांग काफी पसंद आता है। दर्टी पिक्चर में फिल्म स्ट्रगल को दिखाया गया है। कैसे हीरोइन को फिल्म हासिल करने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है। हीरोइन की बोल्डनेस और सबकुछ कर गुजरने के बल पर उसे काम मिलता है और वो स्टार बन जाती है। हलांकि मीडिया उसकी निगेटिव इमेज ही सामने लाती है लेकिन उसे भी खबरों में रहना बाखूबी आ गया है और वो कुछ ऐसी हरकते करती रहती है कि वो सुर्खियों में बनी रहे। हलांकि फिल्म में द्विअर्थी संवादों की भरमार है लेकिन कुछ संवाद यर्थातपरक भी हैं जो जीवन के कटु सत्यों को उजागर करते हैं। हीरोइन एक जगह कहती है कि वो उस वजह को कैसे छोड़ दे जिसकी वजह से वो सिल्क बनी है और इतना फेमस हुई है। आखिर वो सिल्क क्यों बनी इसके जवाब में हीरोइन कहती है कि उसके कमर में हाथ डालने के लिए सब मिले कोई ऐसा नहीं मिला जिसने उसके सर पर हाथ रखा हो। हमेशा सिल्क को नीचा दिखाने और उसे गंदा मानने वाले डायरेक्टर साहब को भी अपनी फिल्म में सेक्स का सहारा लेना पड़ता है और उनकी फिल्म हिट हो जाती है। इसी लड़ाई और सिल्क का हर समय अपमान करते रहने वाले इब्राहीन साहब को भी सिल्क से प्यार हो जाता है। लेकिन वो फिल्मों में काम ना मिलने और कर्ज से इतना तंग आ जाती है कि अंत में पूर्ण भारतीय नारी के लिबास में पूरा श्रृगांर करने मरना पसंद करती है। शायद वो लोगों को बताना चाहती है कि वो जीते-जी तो सही नहीं समझी गई शायद मरने पर ही लोग उसे सही मान लें। फिल्म में एक जगह वो अपने ऊपर लगे गंदगी की आरोपों का मुह तोड़ जवाब देते हुए कहती है लोग ऐसी फिल्म बना सकते हैं और लोग देख भी सकते हैं लेकिन मैने फिल्म में ऐसा काम कर लिया तो मैं गंदी हो गई। समाज चोरी-छुपे वो सब चीज देखना चाहता है जिसे वो गंदा कहता है और इसी गंदगी के लिए उसे इनाम भी दिया जाता है आखिर ऐसा क्यों... कुल मिलाकर एक अलग हटकर फिल्म देखने को मिली इसके लिए डायरेक्टर और स्क्रिप्ट टाइटर का शुक्रिया। (लेखक..विवेक वाजपेयी टीवी पत्रकार हैं।)