tag:blogger.com,1999:blog-20886882757410061992024-03-05T13:12:50.779-08:00मीडियामुसाफिरbajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-42892400100259513362012-05-05T23:44:00.001-07:002012-05-05T23:44:12.979-07:00दिशा के साथ 365 दिन का सफर....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDYrrjLqGE9UbKY_BcO5O5p2Hg3zLUvNZOAB_u-VbRQuGXlyuqEhRkhY8GAdbe8teILlEnRGbRroHy2Yj2nbKdoGRzq23vQHFMGpaaVuxrCd2M13Qk-zipwiR64KKr8ejFCwC-bfAnb-0/s1600/me+in+pcr.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDYrrjLqGE9UbKY_BcO5O5p2Hg3zLUvNZOAB_u-VbRQuGXlyuqEhRkhY8GAdbe8teILlEnRGbRroHy2Yj2nbKdoGRzq23vQHFMGpaaVuxrCd2M13Qk-zipwiR64KKr8ejFCwC-bfAnb-0/s320/me+in+pcr.jpg" width="320" /></a><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">समय कितनी जल्दी बीत जाता है कुछ पता नहीं चलता है। रोज सुबह
होती है दोपहर होती शाम और फिर रात और फिर सुबह ऐसे ही एक के बाद एक दिन गुजरते
चले जाते हैं। वक्त को कोई रोक नहीं सकता और ना ही ये किसी के रोकने से रुकने वाला
है। आज 6 मई है। आज से ठीक एक साल पहले यानि 6 मई 2011 को मैंने दिशा चैनल ज्वाइन
किया था। आज मैंने दिशा के साथ एक साल की यात्रा कर ली है। इस एक साल की यात्रा
में काफी कुछ मैने सीखा और पाया है। ये यात्रा अनवरत जारी है क्योंकि जिंदगी में
अभी बहुत कुछ पाना और सीखना है। मुझे आज भी याद है वो मंगलवार का दिन था करीब सुबह
के 11 या 12 बज रहे होंगे जब दिशा चैनल के मुख्य सेवक माधवकांत मिश्र जी का फोन
आया था।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> उधर से आवाज आई ..किस
दुनिया में हो तुम...आज तो तुम्हारा ऑफ होगा...सही मायने में मुझे ये सुन कर इतना
अच्छा लगा जिसे मैं शायद शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूं। क्योंकि मुझे अभी
जुम्मा-जुम्मा चार दिन हुए पत्रकारिता करते हुए और जो शख्स ये कह रहा था वो पिछले
43 सालों से पत्रकारिता में सक्रिय रहे हैं। इंदिरागांधी के जमाने से संपादक ही
बनते चले आए हैं। अगर ऐसा व्यक्ति आपसे फोन करके कहें कि आज तो तुम्हारा ऑफ होगा
तो हम जैसे व्यक्ति को कितनी खुशी मिलेगी इसका अंदाजा आप सब खुद ही लगा सकते हैं। उसके
बाद उन्होंने कहा कि बहुत दिन हुए तुमसे ना तो कोई बात हुई और ना ही तुम मिले। आज
हम लोग मिलते हैं। बताओ आज मिल सकते हो मैंने कहा सर शाम के वक्त मिल सकते हैं।
फिर उधर से आवाज आई ठीक है फिर शाम 5 बजे मिलते हैं। उसके बाद सर का तीन बार फोन
आया और अंत ये डिसाइड हुआ कि जनपथ में मुलाकॉत होगी। मैंने ठीक बोल दिया। लेकिन सच
पूछिये तो मैं बड़ी गफलत में था कि यार इतने बड़े पत्रकार और मिलेंगे जनपथ में फिर
मैंने सोचा शायद कुछ काम हो इसलिए जनपथ आ रहे हों। उसके बाद जब मैं 5.30 तक नहीं
पहुंच सका तो माधवकांत जी का फिर फोन आया कि कहां हो मैंने कहा कि बारहखम्भा पहुंच
रहा हूं तभी मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया कि जनपथ मे किस जगह मिलना है तो
उन्हो्ने कहा कि लॉबी में आ जाना और वहीं पर हमारी एक और मीटिंग है। तब जाकर राज
खुला कि जनपथ होटल में मिलना है। होटल में मुलाकॉत हुई और कुछ औपचारिक बातचीत के
बाद उन्हो्ने कहा कि अच्छा ये बताओ तुम कब से आ सकते हो....मतलब मेरी ओर से तुम जब
चाहो आ सकते हो अब तुम बताओ मैंने बोला सर वहां मैं रनडाउन संभालता हूं इसलिए करीब
हफ्ते भर बाद ही ठीक रहेगा। फिर शायद सर ने ही कहा कि ऐसा करो 6 मई से ज्वाइन करो
बहुत शुभ दिन है मैंने कहा ठीक है मुझे तो शुभ अशुभ का ज्ञान ही नहीं है। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">तभी से दिशा के साथ के सफर की ये कहनी शुरू हुई जो आज भी जारी
है। हां जब दिशा के साथ सफर की शुरूआत की थी तो मुझे भी काफी दिक्कते पेश आईं
क्योंकि चैनल में माधवकांत मिश्र जी के अलावा मेरा कोई जानने वाला था ही नहीं और
किसी भी नई जगह पर जाने पर थोड़ी बहुत दिक्कत तो जरूर होती है फिर पिछले चैनल का
तीन साल का वो सफर और वो यादे और वो दोस्त मित्र सारे एक झटके में नए लोग जहां का
पूरा वातावरण ही अलग हो शायद जिंदगी का पहला लम्हा था जब मैं किसी धार्मिक चैनल के
अंदर गया था हलांकि चैनल की बाकी सारी चीजे तो कमोबेस वैसी ही होती है लेकिन थोडा
वर्क कल्चर अलग जरूर होता है। ऊपर से मुझे जो नई जिम्मेदारी सौपी गई थी उसका नाम
था शुभ समाचार...जिसको लेकर मेरा पहला ही सवाल मिश्रा जी से यही था कि क्या समाचार
भी शुभ हो सकते हैं। जिसका उन्होंने बड़ा ही तार्किक जवाब दिया था। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">उसके बाद जो दिक्कत आई हो थी काम का कम होना क्योंकि मैं तो
ठहरा हर आधे घंटे में बुलेटिन देने वाला और बैल की तरह काम करने वाला यहां हफ्ते
में एक बुलेटिन देना होता था लेकिन दोनों की खबरों में जमीन-आसमान का फर्क था।
हलांकि मिश्र जी के साथ ही चैनल के सभी लोगों के साथ कुछ ही दिनों में पारिवारिक
महौल सा हो गया और मैं भी इस दिशा परिवार का एक अंग हो गया जिसके बाद काम बढ़ा
जिम्मेदारियां बढ़ी और एक सौहार्दपूर्ण आनंदमय वातावरण में काम करने की आदत पड़
गई। हलांकि शुभ समाचार का बिस्तार हुआ और फिर इसे हफ्ते में तीन बार कर दिया गया।
इसके कुछ दिन बाद मिश्रा जी ने मीटिंग की और कहा अब मेरा विचार है कि शुभ समाचार
को और विस्तार देकर इसे डेली 10 मिनट भी किया जाना चाहिए। हलांकि जो हमारे पास
संसाधन थे उनके मुताबिक मुझे कतई नहीं लग रहा था कि ऐसा सम्भव हो पाएगा लेकिन उनके
संकल्प और द्रढ़ इच्छा शक्ति के चलते हम इस कार्य में भी सफल हुए और डेली शुभ
समाचार दर्शकों के सामने आने लगा। जो मिश्रा जी के संकल्प और हमारी पूरी टीम की
मेहनत था नतीजा था। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<o:p> </o:p><span style="font-family: Mangal, serif;">सच पूछिये तो इस शुभ समाचार ने मेरे अंदर भी काफी बदलाव किए
यूं कह लीजिए की चीजों को देखने का नजरिया ही बदल गया जिसके चलते मुझे पहले बहुत
दिक्कत होती थी शुभ समाचार खोजने में लेकिन एक दिन ऐसा आया की हर ख़बर में शुभता
ही नज़र आने लगी या कहिए की मेरी आंखे शुभता खोजने में फरवट हो गईं।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> जीवन के इन 365 दिनों
में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और रोज बहुत कुछ और सीखता ही रहता हूं क्योंकि ये
जीवन गिव एंड टेक से ही चलता है जो आपके पास नहीं है उसी सीखे और प्राप्त करो और
जो दूसरो के पास नहीं है वो उसे दो और सिखाओ।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">मुझे ऐसा महसूस होता है कि प्रबल इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच
के जरिए असंभव लगने वाले काम भी संभव हो जाते हैं। एक बात हमेशा मिश्रा जी कहते रहते
हैं कि आदमी को किसी काम को करने से पहले हार कतई नहीं माननी चाहिए पहले आप किसी
भी कार्य को करने का सच्चे मन से प्रयत्न तो करो...उनकी इस बात का मैने प्रयोग भी
किया जो सच साबित हुआ इसका जीता जागता उदाहरण है शुभ समाचार डेली बुलेटिन और
हिमाचल आजकल का डेली न्यूज बुलेटिन जिसको सोचकर कभी कभी मैं भी हैरान हो जाता हूं
कि ये सब कैसे हो रहा वो अच्छा...सब प्रभु कृपा है....जैसा ऊपर वाला करवा हरा है
हम कर रहे हैं। वैसे अभी बहुत कुछ बाकी है लेकिन अभी के लिए बस इतना ही दिशा
परिवार के साथ यात्रा जारी है क्योंकि अभी बहुत कुछ सीखना बाकी चैनल के मुखिया
माधवकांत मिश्र जी से और अपने साथ काम करने वाले और आसपास रहने वाले हर शख्स से...।
</span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">विवेक वाजपेयी,प्रड्यूसर दिशा चैनल.... <o:p></o:p></span></div>
</div>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-41067477251843801752012-04-20T23:44:00.004-07:002012-04-20T23:50:33.773-07:00मीडिया महारथियों ने पास किया छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन..<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9v1dJW5HOVoRAk29thh10wXcQh2Ix54L2XX-bJq5Q6AJ9VBvwbynt2zIv6_WWAshz3LSmBfPXi-OzA4-6brahnFeTAV4_3W4zfQ01tA8ihxUIzn6W2_eb0nJ3gcAQh2Pao2e4otXK55M/s1600/Photo0636.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9v1dJW5HOVoRAk29thh10wXcQh2Ix54L2XX-bJq5Q6AJ9VBvwbynt2zIv6_WWAshz3LSmBfPXi-OzA4-6brahnFeTAV4_3W4zfQ01tA8ihxUIzn6W2_eb0nJ3gcAQh2Pao2e4otXK55M/s320/Photo0636.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5733742352537106898" /></a><br /><p class="MsoNormal" style="text-align:justify;text-justify:inter-ideograph; mso-pagination:none;mso-layout-grid-align:none;text-autospace:none"><span lang="HI" style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family:"Aparajita","sans-serif"; mso-ansi-language:EN">जी हां सही पढ़ा आपने साइबर पत्रकार पीयूष पांडे के व्यंग्य संग्रह</span><span lang="EN" style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family: "Aparajita","sans-serif";mso-ansi-language:EN"> ''</span><span lang="HI" style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family:"Aparajita","sans-serif"; mso-ansi-language:EN">छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन</span><span lang="EN" style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family:"Aparajita","sans-serif"; mso-ansi-language:EN">'' </span><span lang="HI" style="font-size:12.0pt; line-height:115%;font-family:"Aparajita","sans-serif";mso-ansi-language:EN">का विमोचनआज 20 अप्रैल यानी शुक्रवार को नोएडा स्थित फिल्म सिटी के मारवाह स्टूडियो में हुआ। इस मौके पर मीडिया जगत के जाने माने प्रत्रकारों और साहित्यकारों ने एकत्र होकर पीयूष पांडे के व्यंग संग्रह छिछोरेबाजी के रिजोल्यूशन को पास कर दिया। कार्यक्रम में आए सभी वरिष्ठ पत्रकारों और साहित्यकारों ने पीयूष पांडे के कार्य की सराहना की। पीयूष पांडे की पुस्तक का जाने माने साहित्यकार और कवि अशोक चक्रधर ने विमोचन किया। इस मौके पर टीवी के जाने- माने पत्रकार पुष्य प्रशून वाजपेयी</span><span lang="EN" style="font-size:12.0pt;line-height:115%; font-family:"Aparajita","sans-serif";mso-ansi-language:EN"> , </span><span lang="HI" style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family:"Aparajita","sans-serif"; mso-ansi-language:EN">अलोक पुराणिक</span><span lang="EN" style="font-size:12.0pt; line-height:115%;font-family:"Aparajita","sans-serif";mso-ansi-language:EN">, </span><span lang="HI" style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family:"Aparajita","sans-serif"; mso-ansi-language:EN">सहित तमाम पत्रकार और साहित्य में रूचि वाले लोग एकत्र हुए। इस अवसर पर आलोक पुराणिक ने अपने व्यंग संग्रह से कुछ व्यंग की फुलझड़ियां छोड़ लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर किया। छिछोरेबाजी क्या है और इसका रिजोल्यूशन कैसे लिया जाता है इसको अगर जानना है तो इसके लिए पांडे जी की कृति पढ़नी पड़ेगी। </span><span lang="EN" style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family:"Aparajita","sans-serif"; mso-ansi-language:EN"><o:p></o:p></span></p>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-91539401589875453062011-12-07T10:14:00.000-08:002011-12-07T10:18:26.752-08:00एक शाम गंदी पिक्चर के नाम......<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1yNRvL5IArbSi6ddHsY9ow2r2ZNbZkJrXU62vgbo_EFWf_sgZMukFP_7QN6FPWnlvYj2AEuYN9GPIVDVAsINiHRR22Ix5QPcb8EoA7EnZt5_ESiZmHFihDK-jJuHoRUVKVUmcHyR7WP4/s1600/dirty+picture.jpeg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 243px; height: 208px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1yNRvL5IArbSi6ddHsY9ow2r2ZNbZkJrXU62vgbo_EFWf_sgZMukFP_7QN6FPWnlvYj2AEuYN9GPIVDVAsINiHRR22Ix5QPcb8EoA7EnZt5_ESiZmHFihDK-jJuHoRUVKVUmcHyR7WP4/s320/dirty+picture.jpeg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5683452095564592002" border="0" /></a><span style="color: rgb(255, 0, 0);font-size:130%;" >एक शाम गंदी पिक्चर के नाम......</span><br /><!--[if gte mso 9]><xml> <w:worddocument> <w:view>Normal</w:View> <w:zoom>0</w:Zoom> <w:punctuationkerning/> <w:validateagainstschemas/> <w:saveifxmlinvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:ignoremixedcontent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:alwaysshowplaceholdertext>false</w:AlwaysShowPlaceholderText> <w:compatibility> <w:breakwrappedtables/> <w:snaptogridincell/> <w:wraptextwithpunct/> <w:useasianbreakrules/> <w:dontgrowautofit/> </w:Compatibility> <w:browserlevel>MicrosoftInternetExplorer4</w:BrowserLevel> </w:WordDocument> </xml><![endif]--><!--[if gte mso 9]><xml> <w:latentstyles 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पाया था इसलिए सोचा कि क्यों न आज फिल्म देखी जाए। वैसे फिल्म जैसी चीज अकेले देखने में मुझे मज़ा नहीं आता और गर्लफ्रेंड जैसी चीज से मैं दूर ही हूं या यूं कहें कि अपने पास है नहीं। चूंकि आज फिल्म का भूत हमारे सिर पर सवार ही था इसलिए सोचा इसे ऊतार कर ही मानूंगा। फिर क्या था एक मित्र को फोन घुमाया जो फिल्म लाइन से ही हैं और 2004 से अगर फिल्म की भाषा में कहें तो मरा ही रहे हैं। हां पिछले तीन चार महीने से साहब को काम मिला है। एक बहुचर्चित सीरियल असिस्ट कर रहे हैं। वो मित्र भी दिल्ली में ही थे इसलिए कंपनी के लिए उन्हें ही बुला लिया और दोनों लोग जा धमके पिक्चर हाल के दरवाजे पर एक सुंदर कन्या ने दक्षिणा ग्रहण कर कागज की पर्ची यानि टिकट थमा दिया। इनदिनों दर्री पिक्चर की तारीफ भी काफी लोगों के मुह से सुन रखी थी इसलिए सोचा देख ही डालू कि आखिर ये गंदी पिक्चर कौन सी बला है। पिक्चर की बोल्डनेस और संवादों की तारीख काफी सुन चुका था। देखो भाई मैं कोई फिल्म क्रिटिक तो हूं नहीं जो लब्बोलुआज के साथ लिखूं मैं ठहरा आम इंसान जिसने जैसा देखा वैसा ही कुछ लिखने का प्रयास कर बैठा। आप लोग दिल थाम के बैठे यथा नाम तथा गुणे यानि कि जैसा नाम वैसा गुण फिल्म की सुरूआत ही यानि दूसर तीसरा सीन एक सेक्स सीन से होती है जहां पर एक आदमी औरत के साथ सेक्स कर रहा है और विद्या बालन यानि सिल्क जोर-जोर से उस सेक्स सीन की आवाजें निकाल रही हैं ये सुनकर उस औरत को बुरा लगता है जो सेक्स क्रीड़ा में लग्न थी और वो काम को छोड़कर विद्या बालन को गाली बकने लगती है और सीन खत्म हो जाता है। हमारे काफी मित्रों का कहना है कि इस सीन को क्यों डाला गया उनके समझ में बिल्कुल नहीं है जहां तक मुझे समझ आया उसके मुताबिक उस सीन से विद्या बालन की बोल्डनेस यानि फिल्म की भाषा मतलब दर्दी पिक्चर की भाषा में कहा जाए तो उनके हरामीपन को दर्शाता है। पूरी फिल्म सिल्क, सूर्यकांत, रमाकांत और इब्राहीम के इर्द-गिर्द घूमती है जिसका केंद्र बिन्दु सिल्क यानि विद्या बालन हैं। डायरेक्टर ने बॉलीवुड की सच्चाई को पर्दे पर उकेरने की कोशिश बड़ी साफगोई से की है। फिल्मों में सेक्स के पक्ष को उजागर किया है। फिल्म में एक डायरेक्टर इब्राहीम है जो सेक्स से बहुत चिढ़ता है और वो ऐसी फिल्म बनाना चाहता है जिसमें सेक्स का तड़का बिल्कुल ना हो। विद्या बालन का सेक्सी सांग वो पहली बार फिल्म से हटवा देता है। और फिल्म धड़ाम हो जाती है। जब प्रड्यूसर को पता चलता है तो वो उस सीन को दोबारा फिल्म में डलवाता है और लोगों को वो सेक्सी सांग काफी पसंद आता है। दर्टी पिक्चर में फिल्म स्ट्रगल को दिखाया गया है। कैसे हीरोइन को फिल्म हासिल करने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है। हीरोइन की बोल्डनेस और सबकुछ कर गुजरने के बल पर उसे काम मिलता है और वो स्टार बन जाती है। हलांकि मीडिया उसकी निगेटिव इमेज ही सामने लाती है लेकिन उसे भी खबरों में रहना बाखूबी आ गया है और वो कुछ ऐसी हरकते करती रहती है कि वो सुर्खियों में बनी रहे। हलांकि फिल्म में द्विअर्थी संवादों की भरमार है लेकिन कुछ संवाद यर्थातपरक भी हैं जो जीवन के कटु सत्यों को उजागर करते हैं। हीरोइन एक जगह कहती है कि वो उस वजह को कैसे छोड़ दे जिसकी वजह से वो सिल्क बनी है और इतना फेमस हुई है। आखिर वो सिल्क क्यों बनी इसके जवाब में हीरोइन कहती है कि उसके कमर में हाथ डालने के लिए सब मिले कोई ऐसा नहीं मिला जिसने उसके सर पर हाथ रखा हो। हमेशा सिल्क को नीचा दिखाने और उसे गंदा मानने वाले डायरेक्टर साहब को भी अपनी फिल्म में सेक्स का सहारा लेना पड़ता है और उनकी फिल्म हिट हो जाती है। इसी लड़ाई और सिल्क का हर समय अपमान करते रहने वाले इब्राहीन साहब को भी सिल्क से प्यार हो जाता है। लेकिन वो फिल्मों में काम ना मिलने और कर्ज से इतना तंग आ जाती है कि अंत में पूर्ण भारतीय नारी के लिबास में पूरा श्रृगांर करने मरना पसंद करती है। शायद वो लोगों को बताना चाहती है कि वो जीते-जी तो सही नहीं समझी गई शायद मरने पर ही लोग उसे सही मान लें। फिल्म में एक जगह वो अपने ऊपर लगे गंदगी की आरोपों का मुह तोड़ जवाब देते हुए कहती है लोग ऐसी फिल्म बना सकते हैं और लोग देख भी सकते हैं लेकिन मैने फिल्म में ऐसा काम कर लिया तो मैं गंदी हो गई। समाज चोरी-छुपे वो सब चीज देखना चाहता है जिसे वो गंदा कहता है और इसी गंदगी के लिए उसे इनाम भी दिया जाता है आखिर ऐसा क्यों... कुल मिलाकर एक अलग हटकर फिल्म देखने को मिली <span style="mso-spacerun:yes"> </span>इसके लिए डायरेक्टर और स्क्रिप्ट टाइटर का शुक्रिया। (लेखक..विवेक वाजपेयी टीवी पत्रकार हैं।) </span></p>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-59703386425424169162010-10-17T12:39:00.000-07:002010-10-17T12:45:11.060-07:00मैं भी रावण बनूंगा.<!--[if gte mso 9]><xml> <w:worddocument> <w:view>Normal</w:View> <w:zoom>0</w:Zoom> <w:punctuationkerning/> <w:validateagainstschemas/> <w:saveifxmlinvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:ignoremixedcontent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:alwaysshowplaceholdertext>false</w:AlwaysShowPlaceholderText> <w:compatibility> <w:breakwrappedtables/> <w:snaptogridincell/> <w:wraptextwithpunct/> <w:useasianbreakrules/> <w:dontgrowautofit/> </w:Compatibility> <w:browserlevel>MicrosoftInternetExplorer4</w:BrowserLevel> </w:WordDocument> </xml><![endif]--><!--[if gte mso 9]><xml> <w:latentstyles deflockedstate="false" latentstylecount="156"> </w:LatentStyles> </xml><![endif]--><!--[if gte mso 10]> <style> /* Style Definitions */ table.MsoNormalTable 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है जब मेरे पास मेरे एक मित्र का सुबह ही फोन आया और उसने ऐसी ही मंशा जाहिर की सुनकर तो मुझे भी पहली बार मजाक लगा लेकिन उसकी आगे की बात</span><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6L_j9hEJCeDGyl3P63eEGXjyPkNaMh3yoIqY2IyZ6GxRD8eyr7mzWUZqM4CHlA6lXinjv4fsnd-4Y7brG1TavrGH6ulJgrmZnANr9eHVd_XhzID6McHQPfzjkpDZpDRTUMzI5ojZc0II/s1600/dusshera101.gif"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 320px; height: 356px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6L_j9hEJCeDGyl3P63eEGXjyPkNaMh3yoIqY2IyZ6GxRD8eyr7mzWUZqM4CHlA6lXinjv4fsnd-4Y7brG1TavrGH6ulJgrmZnANr9eHVd_XhzID6McHQPfzjkpDZpDRTUMzI5ojZc0II/s320/dusshera101.gif" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5529102747739342130" border="0" /></a><span lang="HI" style="font-family:Mangal;"><span></span> सुनकर मैं भी सोंच में डूब गया कि अब ये दिन आ गये हैं पत्रकारों के कि उनको अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए रावण बनना पड़ेगा। हमारे मित्र पेशे से पत्रकार हैं भगवान ने हस्टपुस्ट शरीर और कद काठी उनको दी है। काफी समय से मीडिया में सक्रिय हैं। उन्होंने बहुत खोजी पत्रकारिता कर तमाम खुलासे किये हैं जिनके चलते उन्होंने खूब नौकरियां भी बदली कभी इस चैनल कभी उस चैनल लेकिन प्राइवेट नौकरी खासकर पत्रकारिता में कुछ नौकरी जाने की संभावना ज्यादा ही बनी रहती है। सो बीच-बीच में बेरोजगार भी हो जाते हैं। उनके पीछे उनका परिवार भी है जिसमें बीवी और दो छोटे बच्चे भी जो कभी कांवेन्ट स्कूल में पढ़ते थे आज घर पर ही देखे जाते हैं। कारण बीच में नौकरी छूट जाना। क्योंकि जिस चैनल में काम करते थे पहले तो जान-जोखिम में डलवाकर उसके स्टिंग करवाया फिर उस खुलासे को खोलने की हिम्मत चैनल की नहीं हुई इसकी वजह तो चैनल वाले ही जाने लेकिन भाई ने जब इस पर ऐतराज जाहिर किया तो उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। समझ में नहीं आता ये वही पत्रकार है जिसने ना जाने कितनों की मदद की है। और जिसके नाम से लोग खौफ खाते थे जो दूसरों की लड़ाई अपने कंधो पर ले आगे आ जाता था। वो इतना असहाय कैसे हो गया कि खुद अपनी लड़ाई भी नहीं लड़ सकता है। नौकरी गई तो देनदारियां भी बढ़ती गई और एक दिन ये स्थिति आ गई कि माकान मालिक ने भी उसको अल्टीमेटम दे दिया कि अब और गुजारा नहीं हो सकता। भई कोई क्यों दो चार महीने का पैसा उधार करने लगे जहां आजकल एडवांस का जमाना है। फिलहाल इनको एक चैनल में बड़ी मसक्कत के बाद नौकरी तो मिली लेकिन, वो भी ऐसी कि कहने को तो रोजगार हो गए लेकिन तीन- महीने गुजर गए लेकिन सैलरी का कोई नामोनिशान नहीं। अब तो इनकी हालात और पतली हो गई। क्योंकि घर से बाहर निकलने के लिए किराए के पैसे तो चाहिए ही। इसलिए चारों ओर से मुसीबतों से घिरा इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। इसलिए इन्होंने रावण बनने की ठान ली। इन्होंने सुन रखा था कि आजकल रामलीला में पात्रों की अच्छी डिमांड हैं और पैसे भी अच्छे और नगद मिल जाते हैं। इसलिए इन्होंने रावण बनने की ठान ली और मुझसे कहीं बात करने की मिन्नत करने लगे। थक हार कर मैंने एक रामलीला कमेटी के मुखिया का नंबर ढूंढ निकाला और इनको लेकर जा पहुंचा मुखिया ने देखते पूछां कभी कहीं नाटक वगैरह में काम किया है इन्होंने कहा नहीं लेकिन मैं रावण बन सकता हूं। मुखिया ने इनका कांफीडेंस देखकर तैयार हुआ और बात बन गई लेकिन मुखिया ने कहा रावण बनने के लिए तेज आवाज की जरूरत होने जरा लाउडली बोलने की आदत डालो इन्होंने कहा ठीक मैं बहुत तेज बोलूंगा। होते करते वो दिन भी आ गया जब रावण को स्टेज पर प्रकट होकर भगवान श्रीराम से युद्ध करना और उनको ललकारना था। भगवान राम के सामने आते ही महाशय अपने संवाद ही भूल गए मुह से आवाज बहुत धीमी-धीमी निकली पीछे से रामलीला का मुखिया चिल्लाया अरे क्या कर रहे हो यार तुम रावण हो मिमिया क्यों रहे हो जोर से दहाड़ों लेकिन ये महाशय दहाड़ नहीं सके बल्कि मिमियाते ही रहे। इतने में मुखिया ने माइक संभाला और पर्दे के पीछे से दहाड़ने लगा। और किसी तरह आज का कार्यक्रम संपन्न हुआ कल से नए रावण के नाम का फरमान मुखिया ने सुनाते हुए इनकी जमकर खबर ली। महाशय की गलती नहीं है कभी ये भी खूब दहाड़ते थे लेकिन जब से ये इस नये सीग्रेड चैनल में आएं हैं बेचारे की आवाज ही गुम हो गई हैं यहां तो इन्होंने सिर्फ मिमियाना सीखा है। इनको भली भांति याद है पांडेय जी का हाल जिन्होंने तीन महीने गुजर जाने पर जरा सी ऊंची आवाज में सैलरी मांग ली थी । एचआर और चैनल हेड ने तुरंत पांडेय जी की जमकर खबर ली थी और कहा था बहुत चर्बी चढ़ गई है काम धाम कुछ नहीं चैनल में नेतागीरी करते हैं लोगों को भड़काते हो। ऐसे लोगों की चैनल को जरूरत नहीं हैं कल से यहां आने की जरूरत नहीं। पांडेय जी ने लाख सफाई दी हो लेकिन चैनल हेड सिर्फ एक ही शब्द तोते की तरह रटते जा रहे थे नो आरग्यूमेंट एनफ एनफ...। इस खौफनाक घटना का असर मेरे मित्र पर कुछ ऐसा हुआ कि वो बस मिमियाते हैं ऐसे में भला वो रावण तो बन गया लेकिन रावण की दहाड़ कहां से लाए जो अब कहीं खो गई है।<b> </b>दूसरे की आवाज उठाने वाला पत्रकार अपनी ही आवाज ऊठाने के विवश क्यों हो गया है। क्या आज इसी पत्रकारिता की दरकार है। </span></p> <p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><b style="color: rgb(51, 102, 255);"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">लेखक- विवेक वाजपेयी</span>‘</b><b style="color: rgb(51, 102, 255);"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">मनोज</span>’</b><b style="color: rgb(51, 102, 255);"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> टी.वी. पत्रकार हैं। </span></b><b><span style="color: rgb(204, 204, 204);font-family:Verdana;font-size:10.5pt;" ></span></b></p>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-88185057026599162622010-07-16T13:04:00.000-07:002010-07-17T02:52:26.382-07:00बहुत याद आए प्रभाष जी...<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0HxTP9OBmmYNlVGjqWrToWQYVT4swUgxcc6XqU_rBLRG3rthpXR5GrSkCjq7orHSfnrMeIYq6Lpo6DBWFQIB918B_aNPDaLGknS8v9oHsw-76_6NWkF08Unx43sGtdFYTBmVeYhHdFu8/s1600/P1+JPG.JPG"><img style="MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 272px; FLOAT: right; HEIGHT: 216px; CURSOR: hand" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5494810120310964562" border="0" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0HxTP9OBmmYNlVGjqWrToWQYVT4swUgxcc6XqU_rBLRG3rthpXR5GrSkCjq7orHSfnrMeIYq6Lpo6DBWFQIB918B_aNPDaLGknS8v9oHsw-76_6NWkF08Unx43sGtdFYTBmVeYhHdFu8/s320/P1+JPG.JPG" /></a><br /><div><strong><span style="font-size:180%;color:#cc0000;">बहुत याद आए प्रभाष जी...</span></strong><br />(विवेक वाजपेयी)<br />किसी को कभी भी याद किया जा सकता है। लेकिन हम बात खास उस जगह की कर रहे हैं जहां पर प्रभाष जी को याद करने के लिए ही लोग एकत्रित हुए थे। स्थान था दिल्ली में बापू की समाधि राजघाट के ठीक सामने स्थित गांधी स्मृति के सत्याग्रह मंडप का। जहां पर प्रभाष परंपरा न्यास ने स्वर्गीय प्रभाष जी के जन्मदिन के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में लोगों का हुजूम उमड़ा हुआ था। जिसमें करीब हर वर्ग के लोग मौजूद थे। वयोवृद्ध गांधी वादी लोगों से लेकर आज की युवा पीढ़ी तक सभी। देश की मीडिया के जाने माने लोगों से लेकर पत्रकारिता में कदम रखने वाले युवा भी। इसके साथ ही प्रबुद्ध साहित्यकार और प्रसिद्ध आलोचक भी जिनमें अशोक वाजपेयी और नामवर सिंह को मैं भली-भांति जान सका । प्रभाष जी के पत्रकारिता को दिए गए योगदान की चर्चा लोगों ने अपने अपने ढंग से की। लोगों ने अपने-अपने संस्मरण भी सुनाए। बतातें हैं कि प्रभाष जी को तीन चीजे जिंदगी भर बहुत पसंद रहीं। वो थी लोगों से बतियाना, खाना खिलाना और शास्त्रीय संगीत सुनना। इस कार्यक्रम में प्रभाष जी की तीनों पसंदों का ख्याल रखा गया था। तभी तो पंडित कुमार गंधर्व के पुत्र मुकुल शिवपुत्र के गायन और मालवा की दाल बाटी की भी व्यवस्था की गई थी । और कार्यक्रम में गांधीवादी लोगों की मौजूदगी। कार्यक्रम में प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने प्रभाष का सही अर्थ समझाते हुए व्याख्या की। उन्होंने बताया कि प्रभाष का मतलब, शाब्दिक अर्थ डिस्क्लोज करना होता है, रिवील करना होता है। यही तो करते रहे प्रभाष जी जीवन भर, खुलासे करते रहे। उदघाटित करते रहे। नामवर की यह व्याख्या सबको भाई। लोक धुनों, लोक संगीत, लोक जीवन के प्रति प्रभाषजी के प्रेम को नामवर ने अच्छे तरीके से बताया-सुनाया। ये व्याख्यान मैं नहीं सुन सका क्योंकि मैं कार्यक्रम में थोड़ी देर से पहुंचा था लेकिन एक हमारे मित्र यशवंत भाई ने खाना खाते हुए ये ब्याख्या सुनाई सो मैंने लिख दी।<br />प्रभाष जी के जन्म दिवस के मौके पर उनकी तीन पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। जिसमें उनकी पुस्तक आगे अंधी गली है का लोकार्पण सांसद एवं पत्रकार एचके दुआ ने किया। 21 वी सदी पहला दशक और मसि कागद ने नए संस्करण का विमोचन योगाचार्य स्वमी विद्यानंद ने किया। इसके साथ ही न्यास के प्रबंध न्यासी रामबहादुर राय जी ने संस्था के उद्देश्यों को बताया। साथ ही उन्होंने बताया कि पैसे के बदले खबर पर जोशी की मुहिम का नतीजा रहा कि प्रेस काउंसिल की ओर से 72 पेज की रपट दी है जो देश भर की हालात उजागर करती है। लेकिन बड़े मीडिया घरानों के दबाव में दूसरी 12 सदस्ययी टीम बनी जिसने महज 12 पेज की रिपोर्ट तैयार की। कार्यक्रम के अंत में मुकुल शिवपुत्र का गायन हुआ जिसने लोगों को मंत्रमुग्ध किया और फिर नंबर आया प्रभाष जी की लोगों प्रेम-पूर्वक आवभगत करने का यानि भोजन कराना इन्ही खास गुणों के चलते लोग उनको इतना चाहते थे और आज भी चाहते हैं। उनका लगाव और अपनत्व ही तो था जो उनके विदेशी मित्र भी फाइव स्टार की ऐशो आराम छोड़कर उनके पास थोड़ी सी ही जगह से अर्जेस्ट करके रहने आ जाया करते थे। हैं तो बात खाने की हो रही थी कार्यक्रम स्थल के दांयी तरफ लजीज खाने की व्यवस्था थी। जहां पर लोग तरह-तरह के व्यंजन का स्वाद ले रहे थे। लेकिन लोगों को फुस्फुसाते हुए मैंने सुना कि कुल्फी खाई की नहीं अरे भाई कुल्फी तो बड़ी मस्त है। जरुर खाना। कुल्फी के स्टाल पर कुछ अधिक ही भीड़ लगी थी। खाना खाकर जैसे ही प्लेट रखी हमारे न्यूज हेड को शायद कुल्फी वाली बात किसी से पता चल गई थी सो उन्होंने कहा विवेक सुना है कुल्फी बहुत बढ़िया है। मैने कहा ठीक है आप रुकिये मैं लाता हूं। और लाइन में लग गया लाइन में लगे लगे मारे गर्मी के हालात खराब हो रहे थे लेकिन कुल्फी ले जाना जरुरी था इसलिए लाइन गर्मी की परवाह किए बिना लगा रहा और करीब 30 मिनट बाद एक कुल्फी मेरे हांथ आ गई। वो कुल्फी सर के हवाले कर मैं दोबारा मुस्तैद हुआ और पहले की अपेक्षा जल्दी सफलता हांथ लग गई। जब कुल्फी को मुह से लगाया तो अहसास हुआ कि आखिर क्यों इतनी तगड़ी लाइन थी। वाह गजब का स्वाद था उस कुल्फी मीं लग रहा था शायद उस कुल्फी में प्रभाष जी की मिठास घुल गई थी। हलांकि शायद प्रभाष जी की मिठास सभी को मीठी ना लगती हो खासकर उन्हें जिनके खिलाफ वो आवाज बुलंद करने से कभी नहीं डरे हमेशा सच के साथ डटे रहे। अब कार्यक्रम लगभग पूरा हो चुका था लोग अपने-अपने घरों की ओर प्रस्थान करने लगे थे। रात का करीब ग्यारह बज रहा था। इसलिए मैंने भी राय साहब से अभिवादन कर घर लौटने के लिए तैयार हो गया। तभी राय साहब ने अपनत्वपूर्वक पूंछा वाजपेयी घर कैसे जाओगे मैंने कहा सर मैं अपने न्यूज हेड के साथ आया हूं उन्हीं के साथ चला जाउंगा। उन्होंने कहा तो ठीक है। लेकिन राय साहब के वो शब्द दिल को छू गए जहां आज की मतलबी दुनियां में किसी को किसी की कोई मतलब नहीं होता हैं वहां आज भी ऐसे लोग हैं जो दूसरों के लिए इतना सोचते हैं। जबकि मेरी राय साहब से मुलाकात हुए करीब छह ही महीने हुए हैं। फिर भी उनको मेरे घर पहुंचने की चिंता थी जबकी आदमी एक छोटे से कार्यक्रम बहुत व्यस्त हो जाता है और उन्होंने तो इतना बढ़ा आयोजन किया। सारे रास्ते मैं यही सोचता रहा कि राय साहब में कितना अपनत्व है।</div>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-25803118703147016282010-02-09T03:33:00.000-08:002010-02-09T04:03:50.036-08:00प्यासा है पुष्कर...<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_-9n_tMCsJHWV3IFYw4GxycsOfqhzrRL316e8pAdLcNItNn6rwHW0D9u6iscIZTfvYcqaoP1Szp1Ekysbnrtv4PPJ472l1nwLbdwxRMdC8iaWyIP9Sp9JFnbTNobWNLjxZEX_hyphenhyphenqh-gU/s1600-h/p+mandir+1.jpg"><img style="margin: 0pt 0pt 10px 10px; float: right; cursor: pointer; width: 320px; height: 262px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_-9n_tMCsJHWV3IFYw4GxycsOfqhzrRL316e8pAdLcNItNn6rwHW0D9u6iscIZTfvYcqaoP1Szp1Ekysbnrtv4PPJ472l1nwLbdwxRMdC8iaWyIP9Sp9JFnbTNobWNLjxZEX_hyphenhyphenqh-gU/s320/p+mandir+1.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5436209488764600594" border="0" /></a><br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIl7V7OyMRvICYIFbPX6PqwHMB1u1L4UFe8xLBdcbnAtJOgZaDWDSLFNCN4NSpKb2WCwE1vG9Q_OkPsEzQlIugDUG_ITn0DMhzbjQtn20Qfs20QKOkRsvy4LUSJvGojWJ4sJNitJO23ZY/s1600-h/sarovar1.jpg"><img style="margin: 0pt 0pt 10px 10px; float: right; cursor: pointer; width: 320px; height: 219px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIl7V7OyMRvICYIFbPX6PqwHMB1u1L4UFe8xLBdcbnAtJOgZaDWDSLFNCN4NSpKb2WCwE1vG9Q_OkPsEzQlIugDUG_ITn0DMhzbjQtn20Qfs20QKOkRsvy4LUSJvGojWJ4sJNitJO23ZY/s320/sarovar1.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5436208090684320562" border="0" /></a><br /><p style="margin: 0in 0in 0pt;" class="MsoNormal"><span style="font-size:100%;"><span class="apple-style-span"><strong><span style=";font-family:Mangal;color:black;" >(पुष्कर से लौटकर विवेक वाजपेयी की रिपोर्ट )</span></strong></span></span></p><p style="margin: 0in 0in 0pt;" class="MsoNormal"><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >पुष्कर जिसका नाम बचपन से सुनते और किताबों में पढ़ते आया हूं। जिसे अभी तक सिर्फ महसूस किया था, जिसे सिर्फ कल्पना में ही देखा था जिसे देखने की के लिए अक्सर मन व्याकुल हुआ करता था, जिसका स्मरण करने पर मन मस्तिष्क में ब्रह्मा जी और पवित्र सरोवर की परिकल्पना साकार होती थी उस महान तीर्थ और सरोवर को नजदीक से देखने और महसूस करने का मौका मिला,उस महान तीर्थ और सरोवर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए खबर बनानी थी। दिल्ली से जयपुर और अजमेर से महज बाइस किलोमीटर की दूरी पर अरावली पर्तव की चोटियों से घिरा है पुष्कर तीर्थ। </span></span></p><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" > </span></span><p style="margin: 0in 0in 0pt;" class="MsoNormal"> </p><p style="margin: 0in 0in 0pt;" class="MsoNormal"><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >रास्ते में चारों ओर ऊंचे नीचे रास्तों से होते हुए बहुत रोचक अनुभव हो रहा था मैं अपनी गाड़ी का सीसा उतार कर प्रकृति के मनोहारी द्रश्यों को जीभर कर देख रहा था और पुष्कर पहुंचने की व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी कि एक सज्जन से पूंछने पर पता चला कि अब हम पुष्कर के बहुत करीब पहुंच चुके हैं। हलांकि वो सज्जन बस पुष्कर के बारे में यही बता पाये वहां पर ब्रह्मा जी का मंदिर है और मेला लगता है। पुष्कर पहुंचकर ब्रह्म सरोवर देखने और कवर करने से ही शुरुआत की । हलांकि जिस सरोवर के बारे में बुहत कुछ पढ़ और सुन चुका था उसे पहली नजर देखने में बड़ी निराशा हुई ,वो पवित्र सरोवर जो लाखों लोगों की प्यास बुझाता था वो अब अपनी ही प्यास बुझाने के लायक नहीं बचा है। सरोवर में दूर-दूर तक पानी का नामोंनिशान नहीं है। सरोवर सूख चुका है। सरोवर के अंदर जाकर देखने पर पता चला कि सरोवर में सिर्फ गंदगी शेष बची है। पूरा सरोवर चारों ओर से विभिन्न घाटों से घिरा हुआ है सरोवर के चारों ओर 52 घाट बने हुए हैं जिनकी सीढ़िया सरोवर के अंदर आती हैं। लेकिन आखिरी सीढ़ी तक कहीं भी पानी नहीं है। ये नजारा देखकर मन विचलित हो जाता है। आखिर विश्व प्रसिध्द पुष्कर तीर्थ की ये दुरदशा क्यों है। और इसका जिम्मेदार कौन है। पूरे सरोवर की एक तरफ सरकार ने तीन कुंड बनवाए हैं जिनमें ट्यूबवेल के जरिए पानी भरा गया है। जिसमें श्रध्दालु स्नान करके पूजा पाठ करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि जो मनुष्य पवित्र सरोवर में स्नान करके ब्रह्मा जी के दर्शन करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य को पुण्य लाभ मिलता है। <span> </span>52 कुंडो में</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" > नागा कुण्ड के पानी से निःस्संतान दम्पतियों को आशा बँधती है</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >,</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >यानि कि उनकी सूनी गोद हरी हो जाती है।</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" > </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >वो भी </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >अब पूरी तरह सूख चुका है। यही हाल रूप कुण्ड का भी है</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >जो रूप कुण्ड सुन्दरता और शक्ति प्रदान करने की ताकत रखता था</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >आज अपनी चमक खो चुका है। चारों ओर नज़र दौड़ाईये</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >चाहे वह कपिल व्यापी हो अथवा अन्य </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >49 </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >घाटों के किनारे</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >सब </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >ओर </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >दूर एक ही नज़ारा है</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >सूखा हुआ सरोवर।</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" > </span></span></p><p style="margin: 0in 0in 0pt;" class="MsoNormal"> </p><p style="margin: 0in 0in 0pt;" class="MsoNormal"><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >जब से सर्वशक्तिमान ब्रह्मा जी ने इस पवित्र सरोवर का निर्माण किया है</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >तब से लेकर आज तक यह सिर्फ़ एक बार ही सूखा है</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >वह भी </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >1970 </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >के भीषण सूखे के दौरान। तो फ़िर अब क्या हुआ</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >? </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >बहरहाल</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >,</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" > </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >इस सरोवर के कायाकल्प की सरकारी योजना बुरी तरह भटककर फ्लाफ साबित हो गई</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >,</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" > प्रतीत होती है। सरकार ने सरोवर को साफ करवाकर उसमें फिर से पानी भरवाने की योजना बनाई थी । जो मिट्टी में मिली हुई नजर आ रही है। सरोवर की पानी निकाल कर उसे तो सुखा दिया गया उसके बाद उसे भरने की सुध शायद सरकार या ठेकेदार को नहीं रही होगी तभी तो सरोवर पूरी तरह से सूख चुका है। और अभी सफाई भी पूरी नहीं हुई है वहां के लोगों को पता नहीं कि सफाई अब और होगी भी कि नहीं हां ये जरुर जानते हैं कि सरकार ने कितने पैसे इस काम के लिए आवंटित किए थे। </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >घाट पर पूजा कराने वाले अमृत पाराशर का कहना है कि सरोवर के सूखने से अबकी बार काफी कम लोग पुष्कर आये जिसका प्रभाव सभी पर पड़ा है। शाल ओर कंबल की दुकान लगाने वाले पाठक जी का कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब पुष्कर में आने वाले श्रध्दालुओं की संख्या कम हुई है। उन्होंने बताया कि पुष्कर में हर साल करीब पांच लाख के करीब लोग आते थे लेकिन अबकी बार मुश्किल से डेढ़ से दो लाख लोग आये होंगे जिससे सेल भी प्रभावित हुई है। इसके साथ ही उनका गुस्सा प्रशासन पर भी है और उनका कहना है कि अब पुष्कर में भी चोरी और पाकेट मारी की वारदाते बढ़ गई हैं जो पहले नहीं होती थी जिसके लिए वो प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका आरोप है कि प्रशासन विश्व प्रसिध्द पुष्कर तीर्थ की ओर ध्यान नहीं दे रहा है जिसके चलते पुष्कर की ये दुर्दशा हो गई है। लेकिन क्या करें, हलांकि उन्होंने बताया कि केंन्द्र सरकार ने सरोवर की खुदाई और सफाई के लिए करीब छह करोड़ रूपये दिये हैं लेकिन काम छह लाख का भी नहीं हुआ है। सरोवर को देखने से साफ जाहिर होता है कि उनकी बात में काफी सच्चाई है। सरोवर के अंदर जो पहाड़ों से आकर मिट्टी जमा हो गई थी उसी की सफाई होनी थी लेकिन कुछ भाग के अलावा अभी काफी काम बकाया है। किसी को कुछ पता नहीं कि आगे सफाई का काम होगा कि नहीं। </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >और रही-सही कसर इन्द्र देवता ने वर्षा नहीं करके पूरी कर दी। पुष्कर का <span> </span>विशाल सरोवर शुद्ध जल से भरा हुआ होता है</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >यह पानी अमूमन आसपास की पहाड़ियों से एकत्रित होने वाला वर्षाजल ही है। हिन्दू धर्मालु इसे "तीर्थराज" कहते हैं</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >अर्थात सभी तीर्थों में सबसे पवित्र</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >इस सम्बन्ध में कई लेख और पुस्तकें भी यहाँ मिलती हैं। कहा जाता है कि अप्सरा मेनका ने इस पवित्र सरोवर में डुबकी लगाई थी और ॠषि विश्वामित्र ने भी यहाँ तपस्या की थी</span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;color:black;" >, </span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >लेकिन सबसे बड़ी मान्यता यह है कि भगवान ब्रह्मा ने खुद पुष्कर का निर्माण किया है।</span></span><span style=";font-family:Arial;font-size:10pt;" ><br /></span><span style="color: rgb(0, 0, 0);"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;" > </span></span></p><span style="color: rgb(0, 0, 0);"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;" >पौराणिक मान्यता के मुताबिक </span><span style="font-family:Times New Roman;"><span style="font-size:10pt;">पुष्कर को पृथ्वी की तीसरी आंख और तीर्थोका सम्राट माना गया है। पुष्कर राज का वेद</span><span style="font-size:10pt;">, </span><span style="font-size:10pt;">पुराण</span><span style="font-size:10pt;">, </span><span style="font-size:10pt;">वाल्मीकि रामायण और महाभारत में भी उल्लेख किया गया है। एक समय था जब पुष्कर मेले में राजस्थान</span><span style="font-size:10pt;">, </span><span style="font-size:10pt;">उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों के लाखो श्रद्धालु पवित्र पुष्कर सरोवर में डुबकी लगाने आते थे लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुके पुष्कर मेले में हजारों की तादाद में विदेशी पर्यटक</span><span style="font-size:10pt;">, </span><span style="font-size:10pt;">ग्रामीण परिवेश का नजारा देखने के लिए हर साल आते हैं।</span></span><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;" > </span><span style="font-family:Times New Roman;"><span style="font-size:10pt;">पुष्कर मेले के दौरान विभिन्न वर्ग संप्रदाय</span><span style="font-size:10pt;">, </span><span style="font-size:10pt;">जाति</span><span style="font-size:10pt;">, </span><span style="font-size:10pt;">मत और धर्मो के अनुयायी एक साथ तीर्थराज को अपनी भावांजलिअर्पित कर अपने को कृतार्थ समझते हैं। पुष्कर सरोवर के चारों ओर बने बावन घाटों पर अनेकता</span></span><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;" > </span><span style="font-size:10pt;"><span style="font-family:Times New Roman;">एकता में बदल जाती है</span></span><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" > पद्म पुराण में भी ऐसा उल्लेख मिलता है कि संसार के रचयिता ब्रह्माजीने नीचे की तरफ एक पुष्प गिराया था। यह पुष्प जिन स्थानों पर गिरा वे ब्रह्मा पुष्कर</span></span><span style=";font-family:'Mangal Arial';font-size:10pt;color:black;" ><span style="font-family:Times New Roman;">, </span></span><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >विष्णु पुष्कर तथा शिव पुष्कर के नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्रह्माजीने पुष्कर में यज्ञ किया। ब्रह्माजीको ही मुख्य आहुति देनी थी। ब्रह्माजीआहुति देने बैठे तो उनकी पत्नी सावित्री के नहीं होने पर उनकी तलाश के बावजूद पता नहीं लगा। आहुति का समय गुजरा जा रहा था इसे देख ब्रह्माजीने गायत्री राम की गुर्जर युवती को साथ बिठाकर यज्ञ में आहुति देना शुरू कर दिया। जिससे देवी सावित्री नाराज हो गई और ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि अब तुम्हारी पूजा धरती पर और कहीं नहीं होगी इसी लिए सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी का<span> </span>मंदिर है। <span> </span>करीब चार किलोमीटर के दायरे में फैले पुष्कर सरोवर के चारों तरफ बावन घाट बने हुए है। श्रद्धालु घाटों पर पवित्र डुबकी लगाकर दान-पुण्य</span><span style=";font-family:'Mangal Arial';font-size:10pt;color:black;" ><span style="font-family:Times New Roman;">, </span></span><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >पूजा-अर्चना कर अपने आप को धन्य मानते है। पुष्कर नगरी को मंदिरों की नगरी भी कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। पुष्कर नगरी में विश्व का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर है । इसके साथ ही करीब 500 मंदिर पुष्कर में बने हुए हैं।</span><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" ><span> </span>सुहृदय नाग पर्वतमाला जो अपने आंचल में पुष्कर को समेटे है कभी अगस्त्य</span><span style=";font-family:'Mangal Arial';font-size:10pt;color:black;" ><span style="font-family:Times New Roman;">, </span></span><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >भतर्हरि</span><span style=";font-family:'Mangal Arial';font-size:10pt;color:black;" ><span style="font-family:Times New Roman;">,</span></span><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >विश्वामित्र कपिल तथा कण्व ऋषि-मनीषियों की तपस्या एवं हवन स्थली रही है। धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि पुष्कर सरोवर के किनारे कभी कण्व मुनि का आश्रम भी था।</span><span style="font-family:Times New Roman;"><span style="color: rgb(0, 0, 0);"><span style="font-size:10pt;"> </span></span></span><span style="color: rgb(0, 0, 0);"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;" >पुष्कर</span><span style="font-size:10pt;"><span style="font-family:Times New Roman;"> </span></span><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;" >में</span><span style="font-size:10pt;"><span style="font-family:Times New Roman;"> </span></span></span><span class="apple-style-span"><span style=";font-family:Mangal;font-size:10pt;color:black;" >हर साल पशुओं का सबसे बड़ा मेला लगता है जिसे देखने के लिए विदेशों से लोग आते हैं।<span> </span>इस साल भी 26 अक्टूबर से 2 नवम्बर तक अन्तर्राष्ट्रीय पुष्कर मेले का आयोजन हुआ लेकिन सूखे पड़े पुष्कर सरोवर के कारण विदेशी सैलानियों और भारतीय लोगों की तादाद बहुत कम ही रही। स्वीटर्जरलैंड की रहने वाली स्टैफनी ने बताया कि वो 32 सालों से निरंतर पुष्कर आती हैं और यहां पर रूक कर मेले और मंदिरों में दर्शन कर अपने को आनंदित महसूस करती हैं लेकिन उनका कहना है कि पवित्र सरोवर के सूखने का उनको बहुत दुख है। विश्व प्रसिध्द पुष्कर तीर्थ की दुर्दशा का एहसास शायद सरकार को भी हो सके और वो इस ओर ध्यान दे तो शायद अगले साल पुष्कर मेले तक फिर से पुष्कर सरोवर अपने पुराने स्वरुप में आ सके और लोगों की प्यास बुझा सके । </span></span><span style="font-size:10pt;"><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:Times New Roman;" > </span></span><span style="font-size:10pt;"><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:Times New Roman;" > </span></span><span><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-family:Times New Roman;font-size:100%;" > </span></span> <table class="pagenav" align="center"><tbody><tr><th class="pagenav_prev"> <a href="http://www.mulakatindia.com/index.php?option=com_content&view=article&catid=29%3A2009-04-22-14-36-44&id=232%3A2009-12-20-06-26-08&Itemid=54"><> </a></th> <td width="50"> <br /></td> <th class="pagenav_next"> <a href="http://www.mulakatindia.com/index.php?option=com_content&view=article&catid=29%3A2009-04-22-14-36-44&id=214%3A2009-12-16-17-45-25&Itemid=54">Next ></a></th></tr></tbody></table>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-44638822019084452242009-09-05T23:20:00.000-07:002009-09-05T23:30:48.576-07:00मीडिया मौत किसे मानती है?<div><span style="font-size:180%;color:#ff0000;"><strong>मीडिया मौत किसे मानती है?</strong></span></div><br /><div>देश में स्वाइन फलू को लेकर खूब हाहाकार न्यूज चैनलों पर देखने को मिला। लेकिन इन न्यूज चैनलों की संवेदना उस समय कहां चली गई जब एक ही दिन में देश के दूर-दराज इलाके में एक ही बीमारी से एक दर्जन से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई न्यूज चैनलों की इसी संवेदना पर चिंता प्रकट कर रहे हैं विवेक वाजपेयी।<br />आजकल हर टीवी चैनल और समाचार पत्र में बस एक ही खबर का बोलबाला है वो है स्वाइन फ्लू। न्यूज चैनल तो इस खबर को कुछ ज्यादा ही तवज्जो देने में लगे हुए हैं। तकरीबन हर न्यूज चैनल की लाल-नीली-पीली ब्रेकिंग पट्टियां धड़ाधड़ चल रही हैं। स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या दिखाई जा रही है। आपाधापी और औरों से तेज दिखने के चक्कर में हर चैनल के <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMoxwJmJrceJ8c76IOibIJjilzjx8j39G4idriYUbe2yu3x6qPbg3PBqufUiiWekyuD7u97a6S4fhD0XByPAsf6AxPDeaHG59W3Dt7knKblVXn52zKHV9cTLQ571sOhH_vrK_pYPlqGAQ/s1600-h/fiver.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5378237396410889010" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 237px; CURSOR: hand; HEIGHT: 178px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMoxwJmJrceJ8c76IOibIJjilzjx8j39G4idriYUbe2yu3x6qPbg3PBqufUiiWekyuD7u97a6S4fhD0XByPAsf6AxPDeaHG59W3Dt7knKblVXn52zKHV9cTLQ571sOhH_vrK_pYPlqGAQ/s320/fiver.bmp" border="0" /></a>आंकड़े अलग दिखाई दे जाते हैं। वैसे देखा जाए तो एक-आध चैनल को छोड़कर सभी इस बीमारी को बढ़ा चढ़ा कर दिखा रहे हैं। जिसके चलते तरह-तरह के कार्यक्रम बनाकर लोगों में खौफ फैलाया जा रहा है। देश इस बीमारी के चपेट में आ गया है लेकिन मीडिया वालों को इसी खबर को इतना महिमा मंडित करने की शायद जरूरत नहीं है। भारत में इससे खतरनाक तमाम बीमारियां हैं और उनसे लोगों की जान भी गई है लेकिन उनकी कोई खबर नहीं आखिर क्यों? एक वरिष्ठ डॉक्टर का कहना है कि भारत में जितनी हाय तौबा स्वाइन फ्लू पर मची हैं रोज कहीं उससे ज्यादा लोग साधारण सर्दी जुकाम और बुखार से मौत के मुंह में समा जाते हैं और तमाम बीमारियां हैं जिनसे स्वाइन फ्लू के मुकाबले ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। लेकिन मीडिया स्वाइन फ्लू को लेकर ज्यादा हौव्वा खड़ा कर रही है। भारतीय मीडिया को स्वाइन फ्लू को ज्यादा तवज्जो देने के पीछे कहीं इसका विदेशों से भारत की ओर रूख करना तो नहीं है। क्योंकि ये बीमारी ज्यादातर हाईप्रोफाइल लोगों में ज्यादा फैल रही है और वही लोग इसको विदेशों से भारत में लेकर आए हैं। इस बीमारी की आखिर इतनी चर्चा क्यों हमारी मीडिया कर रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये बीमारी अपने को हर मामले में अव्वल समझने वाले अमेरिका से भारत में आने के कारण मीडिया में छाई रही है। भारत में स्वाइन फ्लू के खौफ से विदेशी कंपनियों का भला जरूर हो रहा है जो अपने उत्पाद भारत में अच्छी कीमत में बेंच रहे हैं। भारतीय बाजार में एक मास्क की कीमत एक सौ पचास रूपए है। वो भी महज बारह घंटे तक कारगर साबित होगा अगर इसके पहले ही मास्क गीला हो जाएगा तो वो प्रभावी नहीं रहेगा। ऐसे में अगर ये बीमारी किसी गरीब को लग जाती है तो या इससे बचने के उपाय अपनाना उसके लिए बेहद मुश्किल साबित होगा।<br />मीडिया का काम खबर दिखाना है और वो ये कर भी रही है लेकिन विभिन्न बीमारियों के प्रति उसका सौतेला व्यवहार अपनाना उसका कौन सा कर्तव्य है समझ से परे है। अभी हालही में एक दिन सुबह सुबह चैनलों पर ब्रेकिंग चल रही थी कि स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या सत्तरह हो गई। और उसी दिन पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक जिले में दिमागी बुखार से बारह लोगों की मौत हो गई थी जिसकी खबर किसी भी चैनल ने दिखाने की जहमत नहीं उठाई आखिर क्यों? क्या उन बारह लोगों की मौत, मौत नहीं है या मीडिया उऩकी मौत को मौत नहीं मानती या उनका कसूर इतना था कि वो दिमागी बुखार से मरे। पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई इलाके में इस सीजन में दिमागी बुखार अक्सर फैलता है और लोगों की जान चली जाती है। लेकिन शायद चैनल वालों को स्वाइन फ्लू के सामने दिमागी बुखार से बारह लोगों के मौत की खबर, खबर नहीं लगी। हालांकि उस समय पूरे देश में स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या 17 थी और एक जिले में दिमागी बुखार से मरने वालों की संख्या 12 थी। मीडिया के इस तरह के पक्षपात पूर्ण व्यवहार से मन सोचने को मजबूर हो जाता है कि हमारी मीडिया की सोच हाई प्रोफाइल लोगों तक ही सीमित हो गई है। क्योंकि मौजूदा मीडिया का मैनेजमेंट भी हाई प्रोफाइल मार्केट से ही चल रहा है। ऐसे में क्या उन लोगों की खबर को जगह नहीं मिलेगी जो मीडिया की सोच से लो प्रोफाइल हैं। इन तमाम चीजों से साफ होता है कि आज का मीडिया अब हाई प्रोफाइल हो गया है। आम लोगों की समस्या को खबर बनाने के लिए उन्हें हाई प्रोफाइल बनना जरूरी है, इसलिए पहले वो हाई प्रोफाइल का तमगा हासिल करें, फिर खबर में जगह मिलेगी। धन्य हो हाई प्रोफाइल मीडिया की।</div><div>लेखक टीवी पत्रकार हैं इनदिनों एसवन न्यूज चैनल में आउटपुट पर कार्यरत हैं। </div>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-24265406811381311832009-05-18T07:42:00.000-07:002009-05-18T08:26:44.366-07:00<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBkB_8Hgc41KxsDjCfpD1DqBP17nDIRs4L9wWsLNb8EIAZq2FaU-r9VqVKv1SJxwqGtdB0BEFq4B7iSggKBwMBtJ-bcfe9qHZJr_klKYvyr01GmFGWISb-pHgHXRJj6nJuoBuVyw6QQcg/s1600-h/kumarv.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5337182928188906082" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 243px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBkB_8Hgc41KxsDjCfpD1DqBP17nDIRs4L9wWsLNb8EIAZq2FaU-r9VqVKv1SJxwqGtdB0BEFq4B7iSggKBwMBtJ-bcfe9qHZJr_klKYvyr01GmFGWISb-pHgHXRJj6nJuoBuVyw6QQcg/s320/kumarv.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:85%;color:#000099;">दोस्तो काफी व्यस्तता की वजह से ब्लाग पर कुछ लिख नहीं पाया हूं इसलिए अपनी ही एक वेबसाइट की एक बानगी दे रहा हूं आशा करता हूं आप लोगों को पसंद आएगी ... विवेक वाजपेयी मुसाफिर टीवी पत्रकार<br /></span><br /><div><span class=""><span style="font-size:180%;color:#990000;"><strong>जिसकी धुन पर दुनिया नाचे -</strong></span> </span></div><br /><br /><div>देश विदेश में कविता और गीतों के जरिए अपने दीवानों को नचाने का माद्दा रखने वाले युवा कवि डॉ। कुमार विश्वास का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनके चाहने वाले गली मोहल्ले से लेकर विदेशों तक में मौजूद हैं। इंटरनेट पर ऑरकुट, यू ट्यूब, और विभिन्न सोशल साईट्स से लेकर कवि सम्मेलनों में उनकी लोकप्रियता का नजारा देखा जा सकता है। इनकी कविताओं ने विदेशों में रह रहे भारतीयों को स्वदेश की मिट्टी से जोड़े रखने में अहम भूमिका निभाई है। कुमार विश्वास इंजीनियर, प्रोफेसर, कवि, लेखक होने के साथ अभिनय में भी हाथ आजमाय है। इनकी जिंदगी से जुड़े विभिन्न पहलुओं को छूने की कोशिश की है हमारे विशेष संवाददाता विवेक वाजपेयी ने पेश है बातचीत </div><div><span style="color:#990000;">कुमार जी बताएं कि आप इस मुकाम तक कैसे पहुंचे और कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।</span></div><div>मेरा जन्म पिलखुवा गाजियाबाद में दस फरवरी को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। मेरे पिता जी का नाम डॉ. चंद्रपाल शर्मा है। जो पेशे से शिक्षक थे। मेरी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई । मुझे बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक रहा है। मैंने प्राथमिक शिक्षा से लेकर स्नाकोत्तर स्तर तक जिला, विश्वविद्यालय एवं राज्य स्तर पर वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया। कई पुरस्कार भी जीते। वर्ष 1990-91 में प्रकाशित एस।एस.वी. कालेज हापुड़ की पत्रिका चिन्तन का छात्र संपादक रहा हूं। इसके साथ ही स्नातकोत्तर परीक्षा में मैंने प्रथम स्थान गोल्ड मेडल प्राप्त किया। उसके बाद मैंने एमए, पीएचडी और डीलिट की उपाधि प्राप्त की। </div><div><span style="color:#990000;">आपने इतने कम समय में इतनी सफलता कैसे पाई, आपके चाहने वालों में लालू और उद्योगपतियों से लेकर कुली तक हैं। </span>देखिये इस सफलता के पीछे बहुत कड़ी मेहनत मैंने की है जब मैंने कवि सम्मेलनों में शिरकत करनी शुरू की थी तो बहुत से कवियों ने कहा ये कल का लड़का क्या कविता कहेगा। लेकिन मेरी अपनी कविता की बदौलत इतनी अधिक संख्या में श्रोता हमारे पास है जितनी संख्या किसी और समकालीन कवि के पास नहीं है मेरी कविता से खुश होकर स्व० धर्मवीर भारती ने मुझे हिन्दी की युवतम पीढ़ी का सर्वाधिक संभावनाशील गीतकार कहा था। महाकवउनके संचालन को निशा नियामक कहते हैं। तो प्रसिद्ध हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा के अनुसार वे इस पीढ़ी के एकमात्र ISO 2006 कवि हैं। हास्यरसावतार लालू प्रसाद यादव, अभिनेता राजबब्बर, गोविन्दा, खिलाड़ी राहुल द्रविड़, मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, नीतिश कुमार, टेलीविजन न्यूज के परिचित चेहरों, उद्योगपतियों से लेकर एक कुली तक हमारे प्रसंशक हैं।</div><div><span style="color:#990000;">कुमार जी आप अपनी उस रचना के बारे में बताएं जो मील का पत्थर साबित हुई है। जिसे लोगों को अक्सर गुनगुनाते देखा जा सकता है।कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है</span> </div><div>हां ये वो कविता है जो मील का पत्थर साबित हुई है वैसे रचनाकार को अपनी सभी रचनाएं प्रिय होती हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसी रचनाएं बन जाती हैं जो लोगों को काफी पसंद आती हैं और उनकी जुबान पर चढ़ जाती हैं उन्ही में से एक है ये रचना । इसको मैने 2006 में लिखा था जब मैं किसी से प्यार करता था । एक दिन मैं अकेला ऑटो में बैठा जा रहा था और ऑटो की आवाज बहुत डिस्टर्ब कर रही थी उसी दौरान मेरे दिमाग में ये विचार आया जो लोगों को इस कदर पसंद आया ऐसा मैने कभी सोचा भी नहीं था। </div><div><span style="color:#990000;">आपका प्रिय सब्जेक्ट क्या है जिस पर लिखते हैं आपकी कविताओं ने युवाओं को कवि सम्मेलनों की ओर मोड़ दिया है ऐसा कैसे हुआ?<br /></span>मेरा प्रिय सब्जेक्ट मानवीय संवेदना है। रही बात युवाओं को इस ओर मोड़ने की तो शायद युवा पीढ़ी मेरी कविता में अपनी छाप देखती है और उसे लगता है कि कवि ने मेरी बात को ही कह दिया है जिसके कारण युवा अपने को जुड़ा हुआ महसूस करता है। और उसे कविता सुनने में रूचि आने लगती है। और उनकी चाहत बढ़ती जाती है । ये युवाओं और लोगों की चाहत ही तो है कि यू ट्यूब पर मेरी कविता दुनिया की कई भाषाओं में देखी और सुनी गई। एक एक परफारमेंस पर तीन चार लाख क्लिक किए गए हैं।<br /><span style="color:#990000;">सुना है आपने फिल्मों में गाने भी लिखे हैं और अभिनय भी किया है।</span><br />हां एक फिल्म है गरम चाय की प्याली जिसमें गोविन्दा जी के कहने पर मैंने अभिनय किया है जिसमें मेरी भूमिका एक मराठी नेता की है। जो क्षेत्रीय राजनीति में रूचि रखता है और जिसकी एक रखैल भी है। वैसे मेरा एक्टिंग करने का कोई इरादा नहीं है। अनुराग कश्यप की एक फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिख रहा हूं। हालांकि उनका कहना है कि फिल्म में गाने से लेकर आप कुछ भी कर सकते हो अभी तो स्क्रिप्ट पर ही काम चल रहा है। मूड के अतिरिक्त दो और अनटाइटिल्ड फिल्मों में गाने लिखने का काम भी जारी है। </div><div><span style="color:#990000;">आप लेक्चरर हैं फिर अचानक पढ़ाना छोड़ कर कवि सम्मेलन ही करने लगे शुरूआत में घरवालों का कैसा रिएक्शन था।<br /></span>मैंने देखा की कविता में बहुत काम करने की जरूरत है और इस फील्ड में युवाओं को आना चाहिए जिसके बाद युवा हमारी बात समझने लगे और सिलसिला बढ़ता चला गया । मैं अभी अवैतनिक अवकाश पर हूं मेरा मानना है जब मैं काम नहीं करता हूं तो पैसा क्यों लू इसलिए अवैतनिक अवकाश ले रखा है। कविता से ही फुर्सत नहीं मिलती की कुछ और कर सकूं। फिलहाल तो कविता में ही रमा हुआ हूं बाकी जिंदगी जिस तरफ ले जाए कुछ पता तो है नही। हां रही बात घर वालों की तो शुरूआत में तो घर वाले मेरे प्रोफेशन के खिलाफ थे लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक होता गया। </div><div><span style="color:#990000;">आजकल जैसा कि चैनलों पर हंसी के बहाने ना जाने क्या क्या परोसा जा रहा है आपने कभी इन कार्यक्रमों में जाने का रूख नहीं किया।<br /></span>टीवी पर आजकल जो परोसा जा रहा है उसे बिल्कुल उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि टीवी के कार्यक्रमों में हंसी के बजाय अश्लीलता और फूहड़पन परोसा जा रहा है। मेरा मानना है कि आप किसी को हसाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हां अगर आपकी कविता में दम है तो लोग खुद ही ताली बजाने पर विवश हो जाएंगे। लेकिन टीवी पर तो ऐसे शब्दों का प्रयोग हो रहा है जिसको परिवार के साथ देखने पर शर्मिंदगी महसूस होने लगती है। बल्कि ये कहना गलत नहीं होगा कि कविता की जगह ड्रामे बाजी ज्यादा हो रही है। जो मेरे हिसाब से जायज नहीं है। हां मै जहां पर हू वहीं ठीक हूं ऐसे कार्यक्रमों में जाने का कोई विचार नहीं है। </div><div><span style="color:#990000;">आजकल चुनावी महौल चल रहा है क्या किसी पार्टी ने आपसे प्रचार करने के लिए संपर्क किया है औऱ क्या आप प्रचार करेंगे।</span> </div><div>हां चुनावी महौल तो जरूर है और चुनाव में खड़े कई उम्मीदवार मेरे अच्छे दोस्त भी हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि कुमार विश्वास किसी के मंच पर खड़े होकर किसी को जिताने की बात करने लगें मैं व्यक्तियों के साथ हूं लेकिन किसी पार्टी के साथ नहीं। मैं अपने राजनेता मित्रों को शेर और जुमले तो जरूर बता देता हूं लेकिन मैं किसी के मंच से बोलने नहीं जाऊंगा। </div><div><span class="">साभार-</span> मुलाकातइंडिया डॉट काम </div></div>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-77367800403028189492009-03-19T10:20:00.000-07:002009-03-19T10:39:55.561-07:00<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1Jf0b9m4YGBA390kA6YivDkO-XxJOriXenOIXBFCjb2aOEUm1C_aKn7N3rPkuUL5PWu_8nI3dhBl72jJWRsaRS5kUzhafIBfX2agy7FIU8odo1rLpPwxnWAuiuyiPXRUbeYgAkUDlPZQ/s1600-h/newsroom2-1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5314954179694496274" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 214px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1Jf0b9m4YGBA390kA6YivDkO-XxJOriXenOIXBFCjb2aOEUm1C_aKn7N3rPkuUL5PWu_8nI3dhBl72jJWRsaRS5kUzhafIBfX2agy7FIU8odo1rLpPwxnWAuiuyiPXRUbeYgAkUDlPZQ/s320/newsroom2-1.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:180%;color:#ff6600;"><strong>आठ बजने वाले हैं ?</strong></span></div><br /><div><span style="color:#3333ff;">विवेक वाजपेयी(मुसाफिर)टीवी </span><span class=""><span style="color:#3333ff;">पत्रकार</span> </span></div><br /><div><span class=""></span><span style="color:#ff0000;">( कहानी की घटायें और पात्र काल्पनिक हैं इनका वास्तविकता से कोई लेना- देना नहीं है अगर किसी पात्र या घटना से मिलान होता है तो महज संयोग होगा इसके लिए लेखक जिम्मेदार नहीं होगा )</span></div><br /><div>घड़ी की सूइयां तीन बजने का संकेत दे रही हैं। चैनल वन के आफिस में सुबह की शिफ्ट के लोग अपने-अपने घरों की ओर कूच करनें की जल्दी में दिख रहे हैं। शाम की शिफ्ट के लोग आते जा रहे हैं और अपना अपना काम संभालने में लगेहैं। तभी चैनल वन के न्यूजरूम में आउटपुट (खबरों का संपादकीय विभाग जो ये निर्णय लेता है कौन सी खबर प्रसारित होगी) के सीनियर प्रोड्यूसर राकेश जी प्रवेश करते हैं। राकेश जी थोड़ा शख्त मिजाज व्यक्ति हैं लेकिन अंदर से उतने ही नरम दिल इंसान भी यानि कि दगनें के दो चार घंटे बाद नारमल हो जाते हैं। राकेश जी एशोसिएट प्रोड्यूसर मिश्रा जी से कहते हैं कहो मिश्रा जी कैसे हो मिश्रा जी उत्तर देते हैं सब ठीक है सर। असल में मिश्रा जी बहुत सीधे-सादे इंसान हैं। अपनी सिधाई के चलते कभी-कभी बेचारे मात खा जाते हैं। बहुत बार न्यूजरूम के लोगों ने देखा है जब मिश्रा जी की गलती ना होने पर भी वो डांटे गए हैं। जब मामला कुछ गड़बड़ होता है तो राकेश जी बड़ी चतुराई से मिश्रा जी को आगे कर देते हैं।इतने में राकेश जी अपनी सीट पर बैठते हैं और रनडाउन पर क्लिक करते हैं(रनडाउनन्यूज बुलेटिन में खबरों के क्रम से बनता है) जो सुबह की शिफ्ट के लोग बनाकर गए हैं। रनडाउन देखते ही राकेश जी एकदम से आग बबूला हो जाते हैं और एकाएक फटपड़ते हैं राकेश जी – क्या यार चूतियापा है, इन सालों को इतना भी देखने की फुर्सत नहीं है कि कल की खबर बगैर अपडेट के पेले पड़े हैं। आखिर पूरा दिन ये लोग क्या उखाड़ते रहते हैं। इसके बाद कुछ पुरानी ख़बरों का फोल्डर देखने लगते हैं जो वहां से नदारत है। अब तो राकेश जी एकदम से तिलमिला उठते हैं और एक ही सांस में भाई लोगों के घर वालों तक की इज्जत अफजाई में कसीदे गढ़ने से नहीं चूकते हैं। यानि की गरियाने लगते हैं, और मिश्रा जी से कहते है यार ऐसे लोगों के साथ मैं कामनहीं कर सकता और बड़बड़ाते हुए न्यूजरूम से बाहर निकल जाते हैं। बाहर कोने में जाकर राकेश जी उगलियों में सिगरेट दबाए कस पर कस लगाए जाते हैं राकेश जी जब टेंशन में होते हैं तो उनके टेंशन रिलीज का सबसे उत्तम साधन सिगरेट ही होती है। वहीं चैनल वन में कुछ लोग एसे भी हैं जो हर बुलेटिन के बाद सिगरेट महरानी की सेवा लेना पसंद करते हैं और खुद को तरो-ताजा महसूस करते हैं। अब राकेश जी तनामुक्त होकर न्यूजरूम में आते हैं और सारे गिले-शिकवे भुलाकर काम में जुट जाते हैं। उधर जिसको जो ख़बर मिली है उसको वो जल्दी से तैयार करके रनडाउन में लगवाने की जल्दी में कम्प्यूटर की की-बोर्ड पर अपनी उंगलियां जोरजोर से पटक रहा है। तभी न्यूजरूम के दूसरी तरफ से आनंद जी स्टूडियो की तरफ से आते हैं। आनंद जी आनंदित कम और सख्त ज्यादा रहते हैं। आनंद जी एंकर और प्रड्यूसर हैं या यूं कहें कि चैनल के एक मजबूत स्तम्भ हैं और पुराने भी हैं। हलांकि उनकी उम्र ज्यादा नहीं हैं लेकिन ज्ञान के अथाह सागर कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी अब जाहिर है जो चैनल का स्तंभ होगा उसकी चैनल में चलती भी खूब होगी। चैनल में उनकी बात को कोई काटने वाला नहीं है, चैनल हेड तक उनकी बात मानते हैं यानि जो कह दिया उसमें कोई गुंजाइश का सवाल ही नहीं उठता और खबरों पर पकड़ तो गजब की है तभी तो स्टुडियो में बैठे-बैठे आउटपुट को बताते हैं कि फलां खबर सही करो। चैनल में आनंद जी का नाम लेते ही चैनल के अधिकतर लोग यही नसीहत देने लगते हैं कि भाई उनसे बच के रहना। क्योंकि काम के प्रति आनंद जी बहुत इमानदार हैं काम को लेकर तनिक भी हीला-हवाली उनको पसंद नहीं, उनके लिए आठ बजने का मतलब आठ होता है ना एक मिनट इधर ना उधर चैनल में किसी को नौकरी देने का तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन अगर उनकी नजरें तिरछी हो गईं तो बंदे की छुट्टी पक्की समझो फिर उसको काटने वाला कोई नहीं इसलिए चैनल में अधिकतर लोगों की उनसे फटती है। उनको देखते ही लोगों को सांप सूंघ जाता है। आनंद जी का एक खास प्रोग्राम चैनल पर रात आठ बजे हफ्ते में पाच दिन आता है जिसको लेकर लोगों में काफी बेचैनी रहती है। आनंद जी न्यूजरूम में बैठे नसीम से कहते हैं और नसीम क्या हो रहा है। नसीम – कुछ नहीं सर बताइए।आनंद जी –सुनों नसीम आज चांद पर चलना है । यानि कि आज आनंद जी का चांद पर प्रोग्राम होगा, समझे ना सब कुछ अरेंज कर लेना प्रोग्राम समय पर चाहिए इतना कह कर आनंद जी न्यूजरूम से बाहर निकल जाते है और एक कोने में दीवार से पैर टिकाकर सिगरेट के कस लेने लगते हैं (ये उनका पसंदीदाइस्टाइल है।) और उनके दिमाग में चांद से संबंधित एक से एक बेहतर सवाल कौंधने लगते हैं। जो एक एक कर प्रोग्राम के दौरान वैज्ञानिकों पर अर्जुन के तीरों की तरह बरसेंगे ।उधर नसीम जो असिस्टेंट प्रोड्यूसर हैं जांद की सैर करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। अभी घड़ी में 6 बज रहे हैं और दो घंटे बाद प्रोग्राम चलना है। नसीम जी भी अपने गुरू यानि आनंद जी के नख्से कदमों पर हैं ,भाषा से लेकर ,राजनीति तक में अच्छी पकड़ रखते हैं। वैसे नसीम जी को चैनल की चलती फिरती लाइबरेरी भी कह सकते हैं क्योकि अगर आपको कोई विजुअल नही मिल पा रहा है तो नसीम जी की सेवा ली जा सकती है और वो पलक झपकते ही बता देगें कि फलां टेप निकलवा लो।नसीम ने सारी स्क्रिपटिग कर ली है और एडिटरूम में बैठे स्टोरी एडिट करवाने में लगे हुए हैं।(एडिटरूम में वीडियो का संपादन किया जाता है।)जैसे-जैसे घड़ी की सूइयां आगे बढ़ रही हैं वैसे-वैसे नसीम के साथ वहां मौजूद एडीटरों की सांसे भी तेज होती जा रही हैं। तीन एडीटरों को नसीम जी अकेले ही संभाल रहे हैं। तीनो मशीन के समान हाथ चला रहे है , स्टोरी लगभग फाइनल ही होने वाली हैं। इसके साथ ही वह समय आने ही वाला है जब चारों ओर सन्नाटा छा जाता है यानि रात के आठ बजे। इस समय को लेकर चैनल के कुछ लोग सन्डे और सैटरडे को चुटकी लेते हुए कहते हैं भई आज तो आठ ही नहीं बजे। अब कार्यक्रम से संबन्धित सभी लोग पीसीआर प्रोडक्शन कंट्रोल रूम में पहुंच गये हैं।जहां से कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है। यहां कि हालत इस समय काफी पतली होती है।पीसीआर में मौजूद लोगों में से दो लोगों की परीक्षा की गड़ी है। उनको सबसे ज्यादा बेचैनी है। एक तो साउंड पर आये सुरेश को और दूसरे नये लड़के विनय को जो ट्रेनी है। और उसको चैनल में आये चार पांच दिन हुए हैं । उसे टी।पी। चलाने के लिए भेजा गया है। टी।पी। वो मशीन होती है जिसे चलाने से एंकर खबर पढ़ता है। वैसे आनंद जी जब स्टूडियो में होते हैं तो टी।पी।चलाना भी आसान नहीं होता है,क्योंकि आनंद जी कब कहां से टीपी पढ़ने लगे और कब अपने आप से धारा प्रवाह बोलने लगें कुछ कहना मुश्किल है। ऐसे में टीपी चलाने वाले का हड़बड़ा जाना स्वाभाविक है। ऊपर से उनकी दहशत जो पीसार में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। तभी एंकर यानि आनंद जी का बोलने का इसारा स्टूडियो से होता है जिसको देखते ही विनय तुरंत कहता है कि एंकर आडियो देना और आनंद जी की बुलंद आवाज टाक बैक से आती है, क्यो अमित क्या देर है चालू किया जाए । पैनल प्रोड्यूसर अमित मरियल सी आवाज में –सर अभी पहला पैकेज और स्टिग नहीं आया है । उधर आठ बजनें में करीब तीन मिनट बाकी हैं। आनंद जी कड़क आवाज में गरजते हैं तो नसीम को बुलाओ यहां क्या हम तमाशा करने के लिए बैठे हैं। तभी दौड़ते हुए नसीम जी पीसीआर में दाखिल होते हैं। और कहते हैं ॥बस सर पैकेज आने वाला है । आनंद जी॥ आने वाला क्या होता है, अभी तक आया क्यो नहीं ,मैं कुछ नहीं जानता दो मिनट में अगर पैकेज नहीं तो सभी लोग समझ लेना । और गेस्ट का क्या सीन है । नसीम ॥सर पहुचने वाले हैं। गेस्ट को बीच में बैठा लेंना चलो शुरू करो॥आनंद जी ने कहा। घड़ी की सूइयां आठ बचने का संकेत दे रही हैं और अभी तक पैकेज नहीं पहुचा है। पीसीआर में मौजूद सभी की सांसे अटकी हुई हैं। तभी टॉक बैक से आनंद जी की आवाज एक बार फिर गूजती है आया क्या । अमित ॥सर आईटी में कुछ गड़बड़ है। आनंद जी ॥मैं नहीं जानता अगर प्रोग्राम खराब हुआ तो तुम सब नपोगे।कार्यक्रम शुरू होता है औऱ आनंद जी स्क्रीन पर कार्यक्रम का आगाज करते हैं। तभी अचानक कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखकर चिल्लाता है पैकोज आ गया और तुरंत उसको चलाता है। तभी हाफते हुए नसीम जी दोबारा पीसीआर में घुसते हैं और कहते है अमित गेस्ट आ गया है सर को बता दो ॥अमित आनंद जी को गोस्ट के आने की सूचना देता है और आनंद जी पैकेज के बीच में गेस्ट को स्टूडियो में बैठाने का इसारा करते हैं। कार्यक्रम धीरे-धीरे अपने शबाब पर पहुचने ही वाला होता है कि विनय से टीपी अचानक आगे बढ़ जाती है जिसे देखकर पैनल प्रोड्यूसर अमित चिल्लाता है अरे यार टीपी कहां पहुंचा दी। क्या मेरी नौकरी खाएगा। इतने में टीपी चलाने वाले नये लड़के विनय से हड़ब़ड़ी में टीपी का नेक्स्ट बटन दब जाता है और टीपी कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ जाती है जिससे स्क्रीन पर समय से पहले ही ब्रेक लिखकर आ जाता है जिसे देखकर पीसीआर में मौजूद लोगों के मानों हांथ पैर फूल जाते हैं। हलांकि आनंद जी मझे हुए पुराने एंकर हैं इसलिए मामले की नजाकत को देखकर सब संभाल लेते हैं। लेकिन पीसीआर के लोग विनय को धौसने में लगे हैं। अमित ॥यार तू तो जाऐगा ही लेकिन कमसे कम दूसरों पर तो रहम करो । ब्रेक होने के बाद आनंद जी का स्वर टॉक बैक के जरिए पीसीआर कौंधता है। टीपी पर कौन है। अमित कहता है ॥सर विनय है आनंद जी इसे टीपी चलाने की तमीज नहीं है तो क्यो बैठा दिया। हमें चूतिया समझ रखा है जो तुम लोगों के एक्सप्रीमेंट के लिए आनएयर गला भाड़ रहे हैं। विनय तो मारे डर के कांप रहा है,उसे कुछ समझ नहीं आ रहा है सिवाय नौकरी जाने के। उसे तो बस यही लग रहा है कि एक तरफ कार्यक्रम खत्म होगा और दूसरी तरफ उसकी नौकरी उसको अब कोई बचाने वाला नहीं है। वह मन ही मन इस उधेड़बुन में है कि अपने जानने वालों और मित्रों को क्या बतायेगा कि नौकरी क्यों छोड़ दी है, या छूट गई ।फिर सोचता है कि अगर सही कारण बताऊंगा तो लोग क्या कहेंगे । कि तुझसे एक इतना छोटा सा काम नहीं हो सका तो तू क्या खाक चैनल में काम करेगा।विनय को अपने साथ अपने घर वालों के सपने टूटते साफ नज़र आ रहे थे कि पैनल प्रोड्यूसर की आवाज तीर की भांति उसके कानों में घुसती चली गई अरे टीपी क्यों नहीं चला रहा है क्या निमंत्रण देना पड़ेगा तब चलायेगा।कैसे कैसे लोग टीवी में काम करने आ जाते हैं, जैसे अमित चैनल में ही पैदा हुआ हो विनय मन में सोचता है। विनय टीपी चलाने लगता है औऱ मन ही मन सोचता है क्या इसी दिन के लिए उसने चैनल ज्वाइन किया था। उसका चार साल पेपर काम करने का अनुभव क्या इनके किसी काम का नहीं । क्या उसकी टीवी पत्रकार बनने की हसरत धरी की धरी रह जाऐगी टीवी में क्या टीपी चलाना ही असली पत्रकारिता होती है। विनय ये सब बाते सोच ही रहा था कि पैनल प्रोड्यूसर अमित की कार्यक्रम वाइंडअप करने की आवाज आती है। उधर विनय की परीक्षा का रिजल्ट आने ही वाला है जिसमें उसके फेल होने के पूरे आसार साफ नज़र आ रहे हैं। सभी को यही चिंता है कि कार्यक्रम खत्म होते ही विनय पर बिजली गिरनी तय है।कार्यक्रम खत्म करके आनंद जी न्यूजरूम में आते हैं। जहां एक कोने की सीट पर विनय उदास मन से दुबका हुआ बैठा है । आनंद जी राकेश जी से कहते हैं ॥यार राकेश जी क्यो आप क्यों प्रोग्राम की मा-बहन एक करवाना चाहते हो । राकेश जी मैं समझा नहीं,आनंद जी अरे यार आज टीपी पर किस चूतिए को भेजा था उसको जब टीपी चलाने की तमीज नहीं है तो क्यो भेज दिया । यार कैसे –कैसे लोगों को रख रखा है आपने। राकेश जी इसारे से विनय को बुलाते हैं विनय जी सर॥राकेश जी ॥क्या हो गया था। विनय धीरे से सर कुछ गड़बड़ी हो गई थी। आनंद जी कुछ नहीं बहुत गड़बड़ी थी विनय मिमियाते हुए सर अब कभी ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी । आनंद जी बड़ी गौर से उसके चेहरे को पढ़ते हैं और कुछ देर कुछ नहीं बोलते हैं न्यूजरूम में सभी के दिल की धड़कने तेज हैं कि देखो क्या हो। फिर थोड़ी देर बाद आनंद जी के होंठ हिलते है लोग सोच रहे हैकि आनंद जी क्याफरमान सुनाते हैं। कि आनंद जी की आवाज गूजती है अब कभी ऐसी गलती तो नहीं होगी,वरना अंजाम तुम खुद सोच लो । इतना कहकर आनंद जी न्यूजरूम से बाहर निकल जाते हैं, और विनय के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर जाती है। और सभी लोग गहरी सांस लेते हैं जैसे कोई जंग फतेह कर ली हो पीसीआर के लोग अगले बुलेटिन की तैयारी में जुट जाते हैं। <span style="color:#3366ff;">लेखक – विवेक वाजपेयी(मुसाफिर)टी।वी पत्रकार</span> </div>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-56202273585712988152009-03-18T12:24:00.000-07:002009-03-18T12:37:33.857-07:00-बस की बेबस बालायेंः-<strong><span style="font-size:180%;"><span style="color:#cc0000;">बस की बेबस बालायेंः</span></span>-<br /></strong>आजकल दिल्ली के किसी बस स्टाप पर खड़े होकर आप गौर से देखिए ,अधिकतर लड़कियां अपने-अपने मोबाइल पर व्यस्त दिखेंगी। एक भी फ्री नहीं दिखेगी। कोई हेडफोन को कान में लगाकर तो कोई फोन को कान पर चिपका कर वार्तालाप में मशगूल होगी। किससे बाते कर रही हैं समझ में नही आता क्योकि लड़के तो सारे फ्री खड़े होते हैं। कोई फोन पर चिपका नहीं दिखता।<br />ये आधुनिक बालायें घर से निकलते ही फोन पर व्यस्त हो जाती हैं उससे(ब्यायफेन्ड) बातें करने में,बस स्टाप पर खड़ी होकर बात करती हैं । बात करते हुए बस में चढ़ जाती हैं,फिर भी बातें नहीं रूकती हैं बस तो जरूर रूकती है पर बातें नहीं पता नहीं कौन सी विदेश नीति फोन पर सुलझा रही है ,कहना बेहद मुश्किल है। बस में चढ़ते ही ये फौरन नजर दौड़ाती हैं अगर कोई जेन्टस लेडीज सीट पर बैठा दिख गया तो उसकी शामत आई समझो तुरन्त फरमान जारी कर देती हैं प्लीज लेडीज सीट,बेचार जेन्टस अगर कहीं न सुन पाया तो ये आधुनिक बालायें उस पर तुरन्त हांथ डाल देती हैं और उसके कंधे को झकझोर कर चिल्ला पड़ती हैं लेडीज सीट । जेन्टस को सीट से हटाकर और सीट के तल पर अपना धरातल स्थापित करके ऐसा गर्व महसूस करती हैं जैसे लक्ष्माबाई ने लार्ड डलहौजी को परास्त कर दिया हो । लेकिन मजे की बात ये है कि फिर भी फोन नहीं रुकता है। ये क्या बातें कर रही हैं क्या मजाल कि आप जरा भी समझ पाएं आपके कानों के पर्दे कितने ही तेज क्यों ना हो । बस मुह बराबर चल रहा है । बस से ज्यादा मुह चलायमान है। पर उनकी बातें सुन पाना हिमालय को दिया दिखाना है। पास में खड़ा हर लड़का बातें सुनने को आतुर दिखाई देता है लेकिन असफलता ही हांथ लगती है।<br />वहीं बस में खड़े एक लड़के ने दूसरे से कहा यार ये कितना बैलेंस रखती हैं,या मोबाईल कंपनी ने यूं ही मोबाइल दे रखा है बतियाने के लिए । दूसरे लड़के ने कहा नहीं यार तुमको नहीं मालूम ये फोन नहीं करती हैं ये मिसकॉल करती हैं ,फोन तो उसने मिलाया है, इसने तो मिसकॉल की होगी। फोन तो उधर से गधेनाथ ने मिलाया होगा। जैसे ही सुबह घर से निकली आफिस के लिए बस तुरन्त गधेनाथ को एक मिसकॉल दाग दी और प्रेमातुर नाथ ने फोन मिला दिया । इस बीच अगर कहीं फोन इंगेज हुआ तो नाथ के दिल की धड़कने और तेज हो जाती हैं, कि आखिर दूसरा फोन कहां से आ गया ,किससे बातें करनी लगीं। लेकिन शायद नाथ को ये नहीं मालूम कि ये आधुनिक बालायें ,बालायें कम बलायें ज्यादा दिखती हैं। इनकी आदतें भैसों जैसी प्रतीत होती हैं ये जहां हरा-भरा चारा देखेंगी वहीं मुह मार लेंगी । इसको ये गलत भी नहीं मानती।<br />कुछ मनचलों के लिए ये आधुनिक बालायें साक्षात फैशन टीवी होती हैं। कुछ की नजरों में एम टीवी होती हैं,और कुछ के लिए ये ऐसी टीवी होती हैं, जिनको परिवार के साथ बैठकर नहीं देखा जा सकता है। कुछ को देखकर ऐसा लगता है मानो सीधे रैंम्प पर जा रही हैं कौन सा कपड़ा कब फिसल जाए कुछ पता नहीं। इन बलाओं के दर्शन अक्सर दिल्ली की बसों में होते रहते हैं। बसों में ये रंग बिरंगी तितलियां खूब दिखाई देती हैं। कोई परकटी होती है। कोई उड़नपरी होती है। कोई नकचढ़ी होती है, कोई चुक चुकी होती है, कोई उतार पर होती है, तो कोई चढ़ाव पर होती है। कोई किसी पर मर चुकी होती है ,तो कोई किसी पर मर रही होती है ,कोई चढ़ने वाली होती है तो कोई उतरने वाली होती है। इनमें से कुछ को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि कुछ के कमर के ऊपर के कपड़े ऊपर की ओर छोटे होते जाते हैं और नीचे के कपड़े नीचे की ओर बीच के कटि प्रदेश में स्वच्छ और समतल मैदान साफ देखा जा सकता है कुछ लोगों को यहीं पर सौन्दर्य बोध होता है। तबतक बस स्टाप पर रूक चुकी होती है मैडम जी बस से बाहर जा रही हैं लेकिन बातें अब भी जारी हैं........<br /><span style="color:#cc0000;">लेखक – विवेक वाजपेयी(मुसाफिर)टीवी पत्रकार<br /><br /></span>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2088688275741006199.post-25922769468872120122009-02-09T08:56:00.000-08:002009-02-09T09:05:06.126-08:00एकदिनी किक्रेट की तरह है काव्यमंच (ब्लाग की किसी भी सामग्री का लेखक की बगैर अनुमति के प्रयोग दण्डनीय अपराध है।) <br />अभी हलही में एक कवि और गीतकार से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जो देश भर में अपनी कविता का जादू बिखेर रहे हैं। उनके चाहने वाले देश के साथ-साथ ही विदेशों तक में फैले हुए हैं। उनकी एक कविता जो मील का पत्थर साबित हुई है। हो सकता है आप लोगों नें भी सुनी हो कविता की लाइनें हैं कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है मगर धरती की बेचैनी को सिर्फ अंबर समझता है..... उनका नाम है डॉ। कुमार विश्वास इस कविता में पता नहीं कौंन सा जादू है कि जो एक बार सुन लेता है वो इसे गुनगुनाने को मजबूर हो जाता है। एक वाक्या आपसे बताता हूं जो इसी कविता से संबंधित है। मैं अपने घर गया था जो लखनऊ के पास सीतापुर जिले में पड़ता है वहां पर कुछ बात चल रही थी तो मैंने इस कविता की पहली लाइन कही इतने में हमारे मैसी के लड़के ने अपने फोन में इस कविता की पूरी रिकार्डिंग सुनाई मैंने उससे पूछा क्या तुम जानते हो ये कविता किसने लिखी है तो उसका जवाब था नहीं लेकिन सुनने में बहुत अच्छी लगती है। फिर मैंने उसको बताया कि ये कविता देश के बहुत चर्चित कवि डॉ। कुमार विश्वास जी की हैं। हमारे आफिस में भी एक सज्जन मुझे इसी कविता को गुनगुनाते मिले उनसे मैंने सवाल किया कि ये आप क्या गुनगुना रहे हैं तो उनका जवाब था ये एक कविता है जो मुझे बहुत अच्छी लगी मैं इसकी पूरी रिकार्डिंग सुनना चाहता हूं। उन्होंने ऐसी ही तमाम कवितायें लिखी हैं। हां तो मैं बता रहा था कि उनसे मिलने मैं गया था जहां बहुत सारे विषयों पर बातचीत हुई जिसमें मीडिया से लेकर आतंकवाद तक पर काफी चर्चा हुई। इसी दौरान बात आज जो हास्य के नाम पर टीवी परोसा जा रहा है उस पर भी पहुंची जिस पर डॉ।साहब की प्रतिक्रिया काबिले तारीफ थी उनका कहना था हास्य के नाम पर फूहड़ता दिखाने या सुनाने का हक हमको नहीं है। हमको अपनी बात को बड़े शालीन तरीके से श्रोताओं या दर्शकों के सामने रखनी चाहिये। उनका कहना था कि श्रोताओं की तालियों के मुझे कुछ भी बोलने का हक नहीं है मदियादा में रह कर लोगों को ज्यादा आनंदित किया जा सकता है। उनका कहना है कि काव्य मंच बिल्कुल एकदिनी क्रिकेट के समान है जिसमें आपके चारों ओर आपको हराने के लिए लोग कतार बध्द खड़े होते हैं,और आपके पास सिर्फ कुछ मिनट का समय होता है उसी समय में आपको अपने जीभ रूपी बल्ले से सबके छक्के छुड़ाने होते हैं । अगर आपकी कविता में दम है तो लोग खुद ही ताली बजाने पर मजबूर हो जाते हैं,औऱ वन्समोर की आवाज आने लगती फिर वही चंद मिनट कब घंटों में बदल जाते हैं कहना मुश्किल है। इसे कहते हैं फलां आदमी छा गया। <br /><br /><br />लेखक विवेक वाजपेयी (मुसाफिर) टीवी पत्रकार और डॉ.कुमार विश्वास की बातचीत पर आधारित <br /><br /><strong></strong><strong></strong><em></em><em></em><blockquote></blockquote>bajpaihttp://www.blogger.com/profile/08607208678894078871noreply@blogger.com0