शनिवार, 5 सितंबर 2009

मीडिया मौत किसे मानती है?

मीडिया मौत किसे मानती है?

देश में स्वाइन फलू को लेकर खूब हाहाकार न्यूज चैनलों पर देखने को मिला। लेकिन इन न्यूज चैनलों की संवेदना उस समय कहां चली गई जब एक ही दिन में देश के दूर-दराज इलाके में एक ही बीमारी से एक दर्जन से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई न्यूज चैनलों की इसी संवेदना पर चिंता प्रकट कर रहे हैं विवेक वाजपेयी।
आजकल हर टीवी चैनल और समाचार पत्र में बस एक ही खबर का बोलबाला है वो है स्वाइन फ्लू। न्यूज चैनल तो इस खबर को कुछ ज्यादा ही तवज्जो देने में लगे हुए हैं। तकरीबन हर न्यूज चैनल की लाल-नीली-पीली ब्रेकिंग पट्टियां धड़ाधड़ चल रही हैं। स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या दिखाई जा रही है। आपाधापी और औरों से तेज दिखने के चक्कर में हर चैनल के आंकड़े अलग दिखाई दे जाते हैं। वैसे देखा जाए तो एक-आध चैनल को छोड़कर सभी इस बीमारी को बढ़ा चढ़ा कर दिखा रहे हैं। जिसके चलते तरह-तरह के कार्यक्रम बनाकर लोगों में खौफ फैलाया जा रहा है। देश इस बीमारी के चपेट में आ गया है लेकिन मीडिया वालों को इसी खबर को इतना महिमा मंडित करने की शायद जरूरत नहीं है। भारत में इससे खतरनाक तमाम बीमारियां हैं और उनसे लोगों की जान भी गई है लेकिन उनकी कोई खबर नहीं आखिर क्यों? एक वरिष्ठ डॉक्टर का कहना है कि भारत में जितनी हाय तौबा स्वाइन फ्लू पर मची हैं रोज कहीं उससे ज्यादा लोग साधारण सर्दी जुकाम और बुखार से मौत के मुंह में समा जाते हैं और तमाम बीमारियां हैं जिनसे स्वाइन फ्लू के मुकाबले ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। लेकिन मीडिया स्वाइन फ्लू को लेकर ज्यादा हौव्वा खड़ा कर रही है। भारतीय मीडिया को स्वाइन फ्लू को ज्यादा तवज्जो देने के पीछे कहीं इसका विदेशों से भारत की ओर रूख करना तो नहीं है। क्योंकि ये बीमारी ज्यादातर हाईप्रोफाइल लोगों में ज्यादा फैल रही है और वही लोग इसको विदेशों से भारत में लेकर आए हैं। इस बीमारी की आखिर इतनी चर्चा क्यों हमारी मीडिया कर रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये बीमारी अपने को हर मामले में अव्वल समझने वाले अमेरिका से भारत में आने के कारण मीडिया में छाई रही है। भारत में स्वाइन फ्लू के खौफ से विदेशी कंपनियों का भला जरूर हो रहा है जो अपने उत्पाद भारत में अच्छी कीमत में बेंच रहे हैं। भारतीय बाजार में एक मास्क की कीमत एक सौ पचास रूपए है। वो भी महज बारह घंटे तक कारगर साबित होगा अगर इसके पहले ही मास्क गीला हो जाएगा तो वो प्रभावी नहीं रहेगा। ऐसे में अगर ये बीमारी किसी गरीब को लग जाती है तो या इससे बचने के उपाय अपनाना उसके लिए बेहद मुश्किल साबित होगा।
मीडिया का काम खबर दिखाना है और वो ये कर भी रही है लेकिन विभिन्न बीमारियों के प्रति उसका सौतेला व्यवहार अपनाना उसका कौन सा कर्तव्य है समझ से परे है। अभी हालही में एक दिन सुबह सुबह चैनलों पर ब्रेकिंग चल रही थी कि स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या सत्तरह हो गई। और उसी दिन पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक जिले में दिमागी बुखार से बारह लोगों की मौत हो गई थी जिसकी खबर किसी भी चैनल ने दिखाने की जहमत नहीं उठाई आखिर क्यों? क्या उन बारह लोगों की मौत, मौत नहीं है या मीडिया उऩकी मौत को मौत नहीं मानती या उनका कसूर इतना था कि वो दिमागी बुखार से मरे। पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई इलाके में इस सीजन में दिमागी बुखार अक्सर फैलता है और लोगों की जान चली जाती है। लेकिन शायद चैनल वालों को स्वाइन फ्लू के सामने दिमागी बुखार से बारह लोगों के मौत की खबर, खबर नहीं लगी। हालांकि उस समय पूरे देश में स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या 17 थी और एक जिले में दिमागी बुखार से मरने वालों की संख्या 12 थी। मीडिया के इस तरह के पक्षपात पूर्ण व्यवहार से मन सोचने को मजबूर हो जाता है कि हमारी मीडिया की सोच हाई प्रोफाइल लोगों तक ही सीमित हो गई है। क्योंकि मौजूदा मीडिया का मैनेजमेंट भी हाई प्रोफाइल मार्केट से ही चल रहा है। ऐसे में क्या उन लोगों की खबर को जगह नहीं मिलेगी जो मीडिया की सोच से लो प्रोफाइल हैं। इन तमाम चीजों से साफ होता है कि आज का मीडिया अब हाई प्रोफाइल हो गया है। आम लोगों की समस्या को खबर बनाने के लिए उन्हें हाई प्रोफाइल बनना जरूरी है, इसलिए पहले वो हाई प्रोफाइल का तमगा हासिल करें, फिर खबर में जगह मिलेगी। धन्य हो हाई प्रोफाइल मीडिया की।
लेखक टीवी पत्रकार हैं इनदिनों एसवन न्यूज चैनल में आउटपुट पर कार्यरत हैं।

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