शनिवार, 5 मई 2012

दिशा के साथ 365 दिन का सफर....


समय कितनी जल्दी बीत जाता है कुछ पता नहीं चलता है। रोज सुबह होती है दोपहर होती शाम और फिर रात और फिर सुबह ऐसे ही एक के बाद एक दिन गुजरते चले जाते हैं। वक्त को कोई रोक नहीं सकता और ना ही ये किसी के रोकने से रुकने वाला है। आज 6 मई है। आज से ठीक एक साल पहले यानि 6 मई 2011 को मैंने दिशा चैनल ज्वाइन किया था। आज मैंने दिशा के साथ एक साल की यात्रा कर ली है। इस एक साल की यात्रा में काफी कुछ मैने सीखा और पाया है। ये यात्रा अनवरत जारी है क्योंकि जिंदगी में अभी बहुत कुछ पाना और सीखना है। मुझे आज भी याद है वो मंगलवार का दिन था करीब सुबह के 11 या 12 बज रहे होंगे जब दिशा चैनल के मुख्य सेवक माधवकांत मिश्र जी का फोन आया था।
 उधर से आवाज आई ..किस दुनिया में हो तुम...आज तो तुम्हारा ऑफ होगा...सही मायने में मुझे ये सुन कर इतना अच्छा लगा जिसे मैं शायद शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूं। क्योंकि मुझे अभी जुम्मा-जुम्मा चार दिन हुए पत्रकारिता करते हुए और जो शख्स ये कह रहा था वो पिछले 43 सालों से पत्रकारिता में सक्रिय रहे हैं। इंदिरागांधी के जमाने से संपादक ही बनते चले आए हैं। अगर ऐसा व्यक्ति आपसे फोन करके कहें कि आज तो तुम्हारा ऑफ होगा तो हम जैसे व्यक्ति को कितनी खुशी मिलेगी इसका अंदाजा आप सब खुद ही लगा सकते हैं। उसके बाद उन्होंने कहा कि बहुत दिन हुए तुमसे ना तो कोई बात हुई और ना ही तुम मिले। आज हम लोग मिलते हैं। बताओ आज मिल सकते हो मैंने कहा सर शाम के वक्त मिल सकते हैं। फिर उधर से आवाज आई ठीक है फिर शाम 5 बजे मिलते हैं। उसके बाद सर का तीन बार फोन आया और अंत ये डिसाइड हुआ कि जनपथ में मुलाकॉत होगी। मैंने ठीक बोल दिया। लेकिन सच पूछिये तो मैं बड़ी गफलत में था कि यार इतने बड़े पत्रकार और मिलेंगे जनपथ में फिर मैंने सोचा शायद कुछ काम हो इसलिए जनपथ आ रहे हों। उसके बाद जब मैं 5.30 तक नहीं पहुंच सका तो माधवकांत जी का फिर फोन आया कि कहां हो मैंने कहा कि बारहखम्भा पहुंच रहा हूं तभी मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया कि जनपथ मे किस जगह मिलना है तो उन्हो्ने कहा कि लॉबी में आ जाना और वहीं पर हमारी एक और मीटिंग है। तब जाकर राज खुला कि जनपथ होटल में मिलना है। होटल में मुलाकॉत हुई और कुछ औपचारिक बातचीत के बाद उन्हो्ने कहा कि अच्छा ये बताओ तुम कब से आ सकते हो....मतलब मेरी ओर से तुम जब चाहो आ सकते हो अब तुम बताओ मैंने बोला सर वहां मैं रनडाउन संभालता हूं इसलिए करीब हफ्ते भर बाद ही ठीक रहेगा। फिर शायद सर ने ही कहा कि ऐसा करो 6 मई से ज्वाइन करो बहुत शुभ दिन है मैंने कहा ठीक है मुझे तो शुभ अशुभ का ज्ञान ही नहीं है।  
तभी से दिशा के साथ के सफर की ये कहनी शुरू हुई जो आज भी जारी है। हां जब दिशा के साथ सफर की शुरूआत की थी तो मुझे भी काफी दिक्कते पेश आईं क्योंकि चैनल में माधवकांत मिश्र जी के अलावा मेरा कोई जानने वाला था ही नहीं और किसी भी नई जगह पर जाने पर थोड़ी बहुत दिक्कत तो जरूर होती है फिर पिछले चैनल का तीन साल का वो सफर और वो यादे और वो दोस्त मित्र सारे एक झटके में नए लोग जहां का पूरा वातावरण ही अलग हो शायद जिंदगी का पहला लम्हा था जब मैं किसी धार्मिक चैनल के अंदर गया था हलांकि चैनल की बाकी सारी चीजे तो कमोबेस वैसी ही होती है लेकिन थोडा वर्क कल्चर अलग जरूर होता है। ऊपर से मुझे जो नई जिम्मेदारी सौपी गई थी उसका नाम था शुभ समाचार...जिसको लेकर मेरा पहला ही सवाल मिश्रा जी से यही था कि क्या समाचार भी शुभ हो सकते हैं। जिसका उन्होंने बड़ा ही तार्किक जवाब दिया था।
उसके बाद जो दिक्कत आई हो थी काम का कम होना क्योंकि मैं तो ठहरा हर आधे घंटे में बुलेटिन देने वाला और बैल की तरह काम करने वाला यहां हफ्ते में एक बुलेटिन देना होता था लेकिन दोनों की खबरों में जमीन-आसमान का फर्क था। हलांकि मिश्र जी के साथ ही चैनल के सभी लोगों के साथ कुछ ही दिनों में पारिवारिक महौल सा हो गया और मैं भी इस दिशा परिवार का एक अंग हो गया जिसके बाद काम बढ़ा जिम्मेदारियां बढ़ी और एक सौहार्दपूर्ण आनंदमय वातावरण में काम करने की आदत पड़ गई। हलांकि शुभ समाचार का बिस्तार हुआ और फिर इसे हफ्ते में तीन बार कर दिया गया। इसके कुछ दिन बाद मिश्रा जी ने मीटिंग की और कहा अब मेरा विचार है कि शुभ समाचार को और विस्तार देकर इसे डेली 10 मिनट भी किया जाना चाहिए। हलांकि जो हमारे पास संसाधन थे उनके मुताबिक मुझे कतई नहीं लग रहा था कि ऐसा सम्भव हो पाएगा लेकिन उनके संकल्प और द्रढ़ इच्छा शक्ति के चलते हम इस कार्य में भी सफल हुए और डेली शुभ समाचार दर्शकों के सामने आने लगा। जो मिश्रा जी के संकल्प और हमारी पूरी टीम की मेहनत था नतीजा था।
 सच पूछिये तो इस शुभ समाचार ने मेरे अंदर भी काफी बदलाव किए यूं कह लीजिए की चीजों को देखने का नजरिया ही बदल गया जिसके चलते मुझे पहले बहुत दिक्कत होती थी शुभ समाचार खोजने में लेकिन एक दिन ऐसा आया की हर ख़बर में शुभता ही नज़र आने लगी या कहिए की मेरी आंखे शुभता खोजने में फरवट हो गईं।
  जीवन के इन 365 दिनों में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और रोज बहुत कुछ और सीखता ही रहता हूं क्योंकि ये जीवन गिव एंड टेक से ही चलता है जो आपके पास नहीं है उसी सीखे और प्राप्त करो और जो दूसरो के पास नहीं है वो उसे दो और सिखाओ।
मुझे ऐसा महसूस होता है कि प्रबल इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच के जरिए असंभव लगने वाले काम भी संभव हो जाते हैं। एक बात हमेशा मिश्रा जी कहते रहते हैं कि आदमी को किसी काम को करने से पहले हार कतई नहीं माननी चाहिए पहले आप किसी भी कार्य को करने का सच्चे मन से प्रयत्न तो करो...उनकी इस बात का मैने प्रयोग भी किया जो सच साबित हुआ इसका जीता जागता उदाहरण है शुभ समाचार डेली बुलेटिन और हिमाचल आजकल का डेली न्यूज बुलेटिन जिसको सोचकर कभी कभी मैं भी हैरान हो जाता हूं कि ये सब कैसे हो रहा वो अच्छा...सब प्रभु कृपा है....जैसा ऊपर वाला करवा हरा है हम कर रहे हैं। वैसे अभी बहुत कुछ बाकी है लेकिन अभी के लिए बस इतना ही दिशा परिवार के साथ यात्रा जारी है क्योंकि अभी बहुत कुछ सीखना बाकी चैनल के मुखिया माधवकांत मिश्र जी से और अपने साथ काम करने वाले और आसपास रहने वाले हर शख्स से...।
विवेक वाजपेयी,प्रड्यूसर दिशा चैनल....  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें